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यशोदा जयंती (18 फरवरी )

भारतीय संस्कृति में मातृत्व और प्रेम का अद्भुत उदाहरण माता यशोदा के रूप में देखा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की पालक माता यशोदा माता का जन्मोत्सव यशोदा जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से उन माताओं के लिए महत्वपूर्ण होता है जो अपने बच्चों की उन्नति, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। साल 2025 में यशोदा जयंती 18 फरवरी को मनाई जाएगी।

इस लेख में हम जानेंगे कि यशोदा जयंती का धार्मिक महत्व क्या है, इसकी पूजन विधि, कथा और इससे जुड़ी मान्यताएँ क्या हैं।


यशोदा माता का परिचय और उनका मातृत्व प्रेम

माता यशोदा को केवल श्रीकृष्ण की पालक माता के रूप में नहीं बल्कि मातृत्व के सर्वोच्च प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को अपने पुत्र के रूप में पाला और अनंत प्रेम लुटाया। श्रीकृष्ण के बाल रूप की अनगिनत लीलाएँ उनके स्नेह और ममता को दर्शाती हैं।

यशोदा माता का नाम आते ही हमें माखन चोरी की लीला, उल्टा लटकाने की सजा, उखल बंधन और संपूर्ण वात्सल्य रूप की याद आ जाती है। भगवान कृष्ण स्वयं भी अपने स्नेह और ममता के लिए माता यशोदा को आदरपूर्वक याद करते हैं।


यशोदा जयंती का धार्मिक महत्व

1. मातृत्व और वात्सल्य का पर्व

यशोदा जयंती माँ के प्रेम और त्याग का प्रतीक है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि माँ केवल जन्म देने वाली ही नहीं, बल्कि प्रेम और पालन करने वाली भी होती है।

2. भक्ति और निष्ठा का प्रतीक

माता यशोदा न केवल श्रीकृष्ण की माँ थीं, बल्कि उनकी परम भक्त भी थीं। यह जयंती हमें अटूट भक्ति और श्रद्धा का संदेश देती है।

3. संतान सुख और उन्नति का पर्व

इस दिन माता यशोदा की पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है, संतान को दीर्घायु और सफलता मिलती है तथा माताओं के जीवन में सुख-शांति आती है।

4. कृष्ण लीला का महत्व

श्रीकृष्ण की लीलाओं में माता यशोदा का विशेष स्थान है। यह पर्व हमें श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं को याद कर उनके अलौकिक रूप को समझने का अवसर देता है।


यशोदा जयंती पूजन विधि

1. व्रत और संकल्प

  • प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें
  • माता यशोदा और भगवान कृष्ण का स्मरण करें।
  • व्रत का संकल्प लें और पूरे दिन सात्विक आहार का पालन करें।

2. पूजन सामग्री

पूजन के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होगी:

  • माता यशोदा और श्रीकृष्ण की प्रतिमा या चित्र
  • पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल)
  • तिलक के लिए हल्दी, चंदन, कुमकुम
  • पुष्प और माला
  • माखन-मिश्री का भोग
  • कपूर और धूपबत्ती
  • भजन और आरती की पुस्तक

3. पूजन विधि

  • सबसे पहले माता यशोदा और श्रीकृष्ण की मूर्ति का पंचामृत से अभिषेक करें।
  • मूर्ति पर चंदन, हल्दी और कुमकुम का तिलक करें और पुष्प अर्पित करें।
  • माता यशोदा को माखन-मिश्री, फल, मिठाई और दूध का भोग लगाएँ।
  • संतान की सुख-समृद्धि के लिए यशोदा माता की कथा पढ़ें
  • अंत में यशोदा माता की आरती करें और प्रसाद वितरण करें।

माता यशोदा की कथा

एक बार माता यशोदा अपने पुत्र श्रीकृष्ण की शरारतों से परेशान होकर उन्हें ओखली से बाँधने लगीं। भगवान कृष्ण ने अपनी माया से माता को यह आभास कराया कि वे छोटे बालक नहीं, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी हैं। जब माता यशोदा ने उनके मुख में ब्रह्मांड देखा, तो वे चकित हो गईं और उन्हें एहसास हुआ कि उनका पुत्र कोई साधारण बालक नहीं बल्कि स्वयं भगवान हैं।

इसके बावजूद, माता यशोदा का वात्सल्य प्रेम अपरंपार था और उन्होंने श्रीकृष्ण को हमेशा एक स्नेही माँ की तरह पाला। उनकी ममता के कारण ही श्रीकृष्ण ने जीवनभर अपनी पालक माता को विशेष स्थान दिया।


यशोदा जयंती के लाभ

1. संतान सुख में वृद्धि

जो महिलाएँ इस दिन व्रत रखती हैं और माता यशोदा की पूजा करती हैं, उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है और उनकी संतान दीर्घायु और स्वस्थ रहती है।

2. पारिवारिक सुख-शांति

इस दिन पूजा करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।

3. नकारात्मक ऊर्जा से बचाव

यशोदा माता की पूजा करने से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

4. भक्ति और आत्मिक शांति

यह दिन भक्ति और ध्यान का प्रतीक है। इससे मन को शांति और आध्यात्मिक संतुष्टि मिलती है।


निष्कर्ष

यशोदा जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि माँ के असीम प्रेम और त्याग का उत्सव है। यह दिन हमें सिखाता है कि माता की ममता कितनी महान होती है और वह अपने बच्चे के लिए क्या-क्या कर सकती है।

यदि आप भी अपने परिवार की सुख-समृद्धि और संतान की उन्नति चाहते हैं, तो इस यशोदा जयंती पर माता यशोदा की पूजा अवश्य करें। यह न केवल हमारी आत्मा को शांति प्रदान करेगा बल्कि जीवन को सुखमय भी बनाएगा। 🙏

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