
महत्व
शीतला सप्तमी व्रत कथा एवं महत्व ( 21 मार्च )
शीतला सप्तमी व्रत हिंदू धर्म में माता शीतला की पूजा के लिए किया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से रोगों से मुक्ति पाने और घर-परिवार को खुशहाल बनाए रखने के लिए रखा जाता है। माता शीतला को विशेष रूप से चेचक, फोड़े-फुंसी और अन्य संक्रामक रोगों से बचाने वाली देवी माना जाता है। यह व्रत होली के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को किया जाता है,
शीतला सप्तमी का मुख्य उद्देश्य माता शीतला की कृपा प्राप्त कर परिवार को रोगों से बचाना और सुख-समृद्धि प्राप्त करना है। इस दिन विशेष रूप से ठंडे भोजन का सेवन किया जाता है, क्योंकि मान्यता है कि इस दिन चूल्हा जलाना वर्जित होता है। इस व्रत की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है और आज भी इसे श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है।
माता शीतला का स्वरूप और उनकी महिमा
माता शीतला को हिंदू धर्म में रोगों की देवी के रूप में पूजा जाता है। पुराणों के अनुसार, माता शीतला का वाहन गधा है और वे अपने हाथों में झाड़ू और कलश धारण किए रहती हैं। झाड़ू यह दर्शाता है कि वे गंदगी को दूर करने वाली हैं, और कलश में अमृत होता है, जो रोगों से मुक्ति प्रदान करता है।
माता शीतला का वर्णन स्कंद पुराण, पद्म पुराण और देवी भागवत में मिलता है। इनमें बताया गया है कि वे देवी पार्वती का ही एक रूप हैं, जो संक्रामक रोगों से रक्षा करती हैं। जब पृथ्वी पर चेचक और अन्य संक्रामक रोगों ने प्रकोप मचाया, तब माता शीतला ने प्रकट होकर अपने भक्तों को इन रोगों से बचाने का वरदान दिया।
शास्त्रों में यह भी वर्णित है कि माता शीतला की पूजा करने से न केवल रोगों से मुक्ति मिलती है, बल्कि घर में शांति, समृद्धि और सुख भी बना रहता है।
शीतला सप्तमी व्रत कथा
प्राचीन काल की कथा
प्राचीन समय की बात है, एक नगर में एक महिला अपने परिवार के साथ रहती थी। वह अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति की थी और माता शीतला की सच्ची भक्त थी। वह प्रत्येक सप्तमी के दिन माता शीतला की विधिपूर्वक पूजा करती, व्रत रखती और बासी भोजन का सेवन करती थी।
उस नगर में एक और महिला थी, जो इस व्रत और माता शीतला की पूजा को अंधविश्वास मानती थी। उसने कभी माता की पूजा नहीं की और न ही इस व्रत का पालन किया। एक बार नगर में भयंकर महामारी फैली, जिसमें लोग चेचक और अन्य संक्रामक रोगों से पीड़ित होने लगे। यह महामारी इतनी भयानक थी कि कई लोग इसकी चपेट में आकर मृत्यु को प्राप्त हो गए।
वह महिला भी इस महामारी की चपेट में आ गई और उसके पूरे शरीर पर चेचक के फफोले हो गए। वह बहुत दुखी हुई और समझ नहीं पा रही थी कि यह उसके साथ क्यों हुआ। तब गांव के एक बुजुर्ग ने उसे माता शीतला की पूजा करने की सलाह दी। उसने माता शीतला के चरणों में सिर झुकाया और उनसे क्षमा मांगी।
अगले सप्तमी के दिन उसने व्रत रखा, माता की विधिपूर्वक पूजा की और ठंडा भोजन ग्रहण किया। माता शीतला की कृपा से उसकी बीमारी धीरे-धीरे ठीक हो गई और वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गई।
इसके बाद से, वह महिला माता शीतला की परम भक्त बन गई और प्रतिवर्ष इस व्रत को करने लगी। उसने नगर के अन्य लोगों को भी इस व्रत के महत्व के बारे में बताया, जिससे वे भी इस परंपरा को मानने लगे। तब से, शीतला सप्तमी का व्रत और इसका महत्व पूरे समाज में फैल गया।
शीतला सप्तमी व्रत की विधि
शीतला सप्तमी व्रत को पूरी श्रद्धा और नियमों के साथ करने से माता शीतला प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं। इस व्रत को करने के लिए निम्नलिखित विधियों का पालन किया जाता है—
1. व्रत की तैयारी
- व्रत से एक दिन पहले ही भोजन बना लिया जाता है, क्योंकि इस दिन चूल्हा जलाने की मनाही होती है।
- व्रती को शुद्धता और सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
- माता शीतला के चित्र या मूर्ति की स्थापना कर पूजा की जाती है।
2. पूजन सामग्री
- जल, रोली, अक्षत, हल्दी, मौली
- दूर्वा, नीम की पत्तियां
- बासी भोजन (पूरी, चावल, गुड़, दही)
- फल, फूल, धूप, दीप
- झाड़ू और कलश (माता शीतला के प्रतीक रूप में)
3. पूजन विधि
- प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- माता शीतला का चित्र स्थापित करें और उनके समक्ष जल अर्पित करें।
- माता को अक्षत, रोली, हल्दी, पुष्प आदि चढ़ाएं।
- बासी भोजन (ठंडा भोजन) का भोग लगाएं।
- माता शीतला की कथा पढ़ें या सुनें।
- शीतला माता की आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
- माता से परिवार की सुख-शांति और आरोग्य की कामना करें।
शीतला सप्तमी का महत्व
1. रोगों से मुक्ति
यह व्रत विशेष रूप से चेचक, फोड़े-फुंसी, त्वचा रोगों और संक्रामक बीमारियों से बचाव के लिए किया जाता है। माता शीतला की कृपा से व्यक्ति स्वस्थ रहता है और उसे किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं होती।
2. घर में सुख-शांति
शीतला माता की पूजा करने से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं करती। माता की कृपा से घर में समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है।
3. पापों का नाश
शास्त्रों के अनुसार, शीतला सप्तमी का व्रत करने से व्यक्ति के पूर्व जन्म और वर्तमान जीवन के पापों का नाश होता है। माता शीतला की पूजा करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
4. परिवार की लंबी आयु
इस व्रत को करने से परिवार के सदस्यों की आयु लंबी होती है और वे निरोगी जीवन व्यतीत करते हैं। माता शीतला अपने भक्तों को हर संकट से बचाती हैं।
निष्कर्ष
शीतला सप्तमी व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत विशेष रूप से स्वास्थ्य, सुख-शांति और समृद्धि के लिए किया जाता है। माता शीतला की पूजा करने से संक्रामक रोगों से बचाव होता है और परिवार में खुशहाली बनी रहती है।
जो भी श्रद्धालु इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करता है, माता शीतला उसे अपना आशीर्वाद प्रदान करती हैं और उसके सभी कष्ट हर लेती हैं।
