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जीवन, विचार और शिक्षाएँ

रामकृष्ण परमहंस जयंती ( 1 मार्च )

परिचय

रामकृष्ण परमहंस भारतीय संत और महान दार्शनिक थे, जिनकी शिक्षाएँ पूरे विश्व में आध्यात्मिकता की प्रेरणा बनीं। वे भक्ति और साधना के प्रतीक माने जाते हैं। उनका जीवन और विचार भारतीय संस्कृति एवं धार्मिक सहिष्णुता के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। उनकी जयंती हर वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाई जाती है। इस दिन श्रद्धालु रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं को याद करते हुए भक्ति और साधना का अभ्यास करते हैं।

रामकृष्ण परमहंस का जीवन परिचय

रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के कामारपुकुर गांव में हुआ था। उनका असली नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था। उनके पिता खुदीराम चट्टोपाध्याय और माता चंद्रमणि देवी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। बचपन से ही गदाधर अत्यंत सरल, आध्यात्मिक और करुणाशील स्वभाव के थे।

धार्मिक झुकाव और साधना

रामकृष्ण परमहंस ने युवा अवस्था में ही अपने भीतर आध्यात्मिकता की गहरी अनुभूति महसूस की। उन्हें कोलकाता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर में पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया। वहाँ उन्होंने माँ काली की आराधना में स्वयं को समर्पित कर दिया। वे कहते थे, “माँ काली ही मेरा सब कुछ हैं।”

धीरे-धीरे उन्होंने अन्य धर्मों की शिक्षाओं का भी गहन अध्ययन किया और उन्हें आत्मसात किया। वे हिंदू धर्म के विभिन्न संप्रदायों के अलावा इस्लाम और ईसाई धर्म के भी अनुयायी बने और सभी में एकता का अनुभव किया। उनका मानना था कि सभी धर्मों का लक्ष्य एक ही ईश्वर की प्राप्ति है।

शिक्षाएँ और विचार

रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाएँ सरल, स्पष्ट और गहन थीं। उनके अनुसार, धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की एक कला है। उनकी कुछ प्रमुख शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं:

1. सभी धर्मों में समानता

उन्होंने सिद्ध किया कि सभी धर्म एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं। उन्होंने कहा:
“जैसे एक ही सरोवर से अलग-अलग लोग अपने-अपने पात्र में पानी लेते हैं, कोई इसे जल कहता है, कोई वॉटर, कोई पानी तो कोई नीर, लेकिन वह सभी के लिए एक ही है।”

2. भक्ति मार्ग की महत्ता

रामकृष्ण परमहंस भक्ति को मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग मानते थे। उन्होंने माँ काली की साधना करके यह अनुभव किया कि सच्ची भक्ति से ही ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।

3. गुरु का महत्व

उनका मानना था कि बिना सच्चे गुरु के आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ना कठिन है। उनके अनुसार, “गुरु वह है जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए।”

4. सादा जीवन, उच्च विचार

रामकृष्ण परमहंस ने हमेशा सादगी पर जोर दिया। उनका मानना था कि साधारण जीवन जीकर भी आत्मा को उच्चता की ओर ले जाया जा सकता है।

5. काम, क्रोध और लोभ से बचाव

उन्होंने सिखाया कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार से दूर रहना चाहिए। उनका कहना था:
“यदि मनुष्य इन बुराइयों पर काबू पा ले, तो वह साक्षात ईश्वर को प्राप्त कर सकता है।”

स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण मिशन

रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानंद ने उनकी शिक्षाओं को पूरे विश्व में फैलाया। उन्होंने 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो आज भी शिक्षा, सेवा और आध्यात्मिक जागरूकता के क्षेत्र में कार्यरत है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था:
“रामकृष्ण परमहंस न केवल एक संत थे, बल्कि वे ईश्वर के साक्षात स्वरूप थे।”

रामकृष्ण परमहंस जयंती का महत्व

रामकृष्ण परमहंस जयंती उनके अनुयायियों के लिए एक विशेष दिन होता है। इस दिन कई धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं, जैसे:

  • रामकृष्ण परमहंस की पूजा और भजन
  • ध्यान और साधना
  • भाषण और संगोष्ठी
  • गरीबों को भोजन और वस्त्र वितरण

इस अवसर पर विभिन्न रामकृष्ण मिशन केंद्रों और मंदिरों में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भक्तजन उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेते हैं।

रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं का आधुनिक संदर्भ

आज के युग में, जब लोग मानसिक तनाव, प्रतिस्पर्धा और भौतिकता में उलझे हुए हैं, रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाएँ शांति और आत्म-साक्षात्कार का मार्ग दिखा सकती हैं। उनके विचार हमें यह सिखाते हैं कि सच्चा सुख बाहरी चीजों में नहीं, बल्कि भीतर की शांति में है।

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