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नारद जी की जयंती

हिंदू धर्म में नारद मुनि जी  को एक  महत्वपूर्ण और आदरणीय ऋषि कहा जाता है। उन्हें  बहुत से लोग त्रिलोक संचारक के रूप में जानते है, जो तीनों लोकों में विचरण कर भगवान के संदेश और ज्ञान का प्रसार करते हैं। नारद मुनि को विश्व का पहला पत्रकार भी कहा जाता है क्योंकि वे सूचना , संवाद और ज्ञान के वाहक थे। हर वर्ष ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को नारद जयंती मनाई जाती है। यह दिन नारद मुनि की स्मृति में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। 

नारद मुनि का परिचय

नारद मुनि भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र माने जाते हैं। वे विष्णु भक्त हैं और भगवान विष्णु की स्तुति में सदैव रमे रहते हैं। उनके हाथों में वीणा होती है, जिसे बजाते हुए वे भगवान नारायण के नाम का जाप करते है। उनका स्वरूप अत्यंत ज्ञानमय, विनोदी और लोकहितकारी है। वे न केवल देवताओं और ऋषियों के मध्य संवाद सेतु का निर्माण ही नहीं करते , बल्कि वे घटनाओं को गति देने वाले, धर्म की स्थापना के प्रेरक भी हैं।

नारद जयंती का महत्व

नारद मुनि की जयंती को लोग आज इसलिए  विशेष महत्व देते है  क्योंकि नारद मुनि हमे एक  सच्चे संवाद, ज्ञान के प्रचार और भक्ति की महत्ता का स्मरण कराते है। नारद जी को  ज्ञान, विवेक और भक्तिमार्ग का प्रतीक भी माना जाता हैं। उनके  जीवन से हमें यह सिख मिलती है कि जो भी भक्त अपने सच्चे हृदय से ईश्वर की भक्ति और स्तुति करता है ईश्वर उनके जीवन की सभी समस्याओं को हर लेते है 

नारद जयंती पर पूजन विधि

नारद जयंती के दिन भक्तजन व्रत रखते हैं और प्रातःकाल स्नान कर के स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। नारद मुनि की प्रतिमा या चित्र की पूजा कर पुष्प, दीप, धूप, नैवेद्य अर्पित किया जाता है। कई स्थानों पर कथाएं और प्रवचन आयोजित किए जाते हैं, जिसमें नारद मुनि की लीलाओं और उपदेशों का वर्णन होता है।  

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