
माता शैलपुत्री की कथा
माता शैलपुत्री की कथा, पूजा विधि एवं उसके लाभ
जैसा की हम सब जानते है चैत्र नवरात्री शुरू होने वाली है जो की इस बार 9 के बजाय 8 दिन की होगी यह आठ दिन माँ आदिशक्ति की उपासना के लिए सर्वोत्तम माने जाते है साथ ही साथ इन नवरात्रों की शुरुआत माता शैलपुत्री की पूजा से होती है।
माता शैलपुत्री की कथा का संबंध माता सती के जन्म और उनके पुनर्जन्म से है।
माता सती और दक्ष प्रजापति की कथा माता सती भगवान शिव की पत्नी थीं और वे प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। एक बार प्रजापति दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया और उसमें अपने समस्त देवताओं, ऋषियों और मुनियों को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया। जब माता सती को इस बात का पता चला, तो वे बिना निमंत्रण के ही अपने पिता के यज्ञ में चली गईं। वहां जाकर उन्होंने देखा कि उनके पति भगवान शिव का अत्यधिक अपमान किया जा रहा है। यह देखकर वे अत्यंत क्रोधित एवं दुखी हो गईं।
अपने पति का अपमान सहन न कर पाने के कारण माता सती ने स्वयं को योग-अग्नि द्वारा भस्म कर लिया। जब भगवान शिव को इस घटना का पता चला, तो वे अत्यंत क्रोधित हो उठे। उन्होंने अपने गणों को भेजकर दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करवा दिया और स्वयं वीरभद्र रूप धारण कर प्रजापति दक्ष का वध कर दिया।
माता सती का पुनर्जन्म – माता शैलपुत्री के रूप में माता सती ने अगला जन्म पर्वतराज हिमवान और नैना के घर लिया और इस जन्म में वे पार्वती कहलाईं और उनका बचपन का नाम शैलपुत्री था। उन्होंने कठोर तपस्या करके पुनः भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया।
इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि भक्ति और प्रेम से हर कठिनाई को पार किया जा सकता है। माता शैलपुत्री का जीवन हमें यह भी सिखाता है कि आत्मसम्मान एवं धर्म के लिए हमें अपने कर्तव्य के प्रति दृढ़ रहना चाहिए।
माता शैलपुत्री की पूजा विधि का विस्तृत विवरण
नवरात्रि के प्रथम दिन माता शैलपुत्री की आराधना का विशेष महत्व होता है। इनकी पूजा करने से जीवन में शक्ति, धैर्य और आत्मविश्वास बढ़ता है। माता शैलपुत्री की पूजा विधि को पांच मुख्य चरणों में विभाजित किया जाता है, जो इस प्रकार है—
1. प्रातः काल स्नान एवं संकल्प
पूजा से पहले स्वयं को शुद्ध करना आवश्यक होता है। इस चरण में—
- सूर्योदय से पूर्व उठें और स्नान करें, जिससे शरीर और मन की शुद्धि होती है।
- स्वच्छ वस्त्र धारण करें, विशेष रूप से लाल या पीले रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है।
- पूजा शुरू करने से पहले संकल्प लें, जिसमें आप माता की उपासना का उद्देश्य और अपना मनोवांछित फल प्राप्त करने की कामना करते हैं। संकल्प मन ही मन दोहराने से पूजा का प्रभाव अधिक होता है।
2. पूजा स्थल की तैयारी
पूजा का स्थान पवित्र और व्यवस्थित होना चाहिए, इसलिए—
- पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें, जिससे वहां की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाए।
- लकड़ी की चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं, जो शुभता का प्रतीक होता है।
- माता शैलपुत्री की मूर्ति या चित्र स्थापित करें, ताकि उनकी उपस्थिति का अनुभव हो।
- साथ में एक कलश स्थापित करें, जिसे नवग्रहों और देवी-देवताओं का प्रतीक माना जाता है। कलश में जल भरें, उस पर आम के पत्ते रखें और ऊपर नारियल रखें। यह सुख-समृद्धि और शांति का प्रतीक होता है।
3. पंचोपचार पूजन (पाँच विधियों से माता की पूजा)
माता की आराधना में पांच चरण शामिल होते हैं—
(i) ध्यान
पूजा शुरू करने से पहले माता शैलपुत्री का ध्यान करें और उनके स्वरूप का मनन करें। उनके गुणो का ध्यान करने से मन को शांति मिलती है।
(ii) आवाहन (माता का आह्वान)
मंत्रों और प्रार्थना द्वारा माता को अपने घर में पधारने के लिए आह्वान करें। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
(iii) स्नान एवं वस्त्र अर्पण
माता को जल से स्नान कराएं (यदि मूर्ति हो तो जल अर्पण करें) और उन्हें वस्त्र समर्पित करें। लाल या पीले वस्त्र अर्पित करना शुभ माना जाता है।
(iv) चंदन, अक्षत, पुष्प एवं धूप-दीप समर्पण
- चंदन – माता को चंदन का तिलक करें, जिससे शीतलता बनी रहे।
- अक्षत (चावल) – चावल अर्पित करना अखंडता और समृद्धि का प्रतीक है।
- पुष्प – माता को लाल और पीले फूल अर्पित करें, ये रंग शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा के प्रतीक हैं।
- धूप एवं दीप – धूप जलाकर वातावरण को सुगंधित और पवित्र करें, दीप प्रज्वलित करें जिससे नकारात्मक ऊर्जा दूर हो।
(v) भोग समर्पण
माता को गाय के घी और चीनी से बना प्रसाद अर्पित करें। यह प्रसाद शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक होता है।
4. मंत्र जाप (माता की कृपा प्राप्त करने के लिए)
माता शैलपुत्री का मंत्र जाप करने से पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है। इस चरण में—
- माता के इस मंत्र का 108 बार जाप करें:
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः - जाप के दौरान एकाग्रता बनाए रखें और मन में माता का स्मरण करें।
- यदि संभव हो तो रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें, इससे ऊर्जा का संचार तेजी से होता है।
5. आरती एवं प्रसाद वितरण
पूजा का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण भाग आरती एवं प्रसाद वितरण है—
- माता की आरती करें, जिससे उनके आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।
- शंख और घंटी बजाकर वातावरण को पवित्र और ऊर्जावान बनाएं।
- आरती के बाद प्रसाद वितरित करें और इसे सभी भक्तों को दें।
- पूरे नवरात्रि में माता शैलपुत्री की पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है और व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता बढ़ती है।
नवरात्रि के पूरे नौ दिन माता की पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है।
माता शैलपुत्री की पूजा का महत्व एवं इसके लाभ
माता शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के प्रथम दिन की जाती है और इसे करने से भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। माता शैलपुत्री को शक्ति, भक्ति और साधना का प्रतीक माना जाता है। उनकी पूजा करने से जीवन की कई समस्याओं का समाधान होता है और भक्तों को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।
1. आत्मशुद्धि एवं आत्मसंयम
माता शैलपुत्री की पूजा व्यक्ति के मन और आत्मा को शुद्ध करने में सहायक होती है।
- जब कोई भक्त माता की आराधना करता है, तो उसके मन में शुद्धता और पवित्रता का संचार होता है।
- यह पूजा आत्मसंयम (Self-Control) विकसित करने में मदद करती है, जिससे व्यक्ति अपने कर्तव्यों के प्रति अधिक जागरूक होता है।
- जो व्यक्ति अपनी गलत आदतों को छोड़ना चाहते हैं और संयमित जीवन जीना चाहते हैं, उनके लिए माता शैलपुत्री की उपासना विशेष लाभकारी होती है।
- यह पूजा मन को शांत करती है और नकारात्मक विचारों को समाप्त करने में मदद करती है।
2. विवाह एवं दांपत्य जीवन की समस्याओं का निवारण
माता शैलपुत्री को देवी पार्वती का रूप माना जाता है, जो भगवान शिव की पत्नी हैं।
- माता की कृपा से उन लोगों के विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं, जो विवाह के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
- यदि किसी व्यक्ति का विवाह तय नहीं हो रहा है या विवाह में देरी हो रही है, तो माता शैलपुत्री की पूजा करने से शीघ्र विवाह के योग बनते हैं।
- जो लोग वैवाहिक जीवन में समस्याओं से परेशान हैं, उनके लिए भी यह पूजा अत्यंत लाभकारी होती है।
- दांपत्य जीवन में प्रेम और सौहार्द बनाए रखने के लिए माता शैलपुत्री की आराधना करना अत्यंत फलदायी होता है।
3. आध्यात्मिक जागरण एवं शक्ति की प्राप्ति
माता शैलपुत्री की आराधना से व्यक्ति को मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है।
- उनकी पूजा करने से आध्यात्मिक उन्नति (Spiritual Awakening) होती है, जिससे व्यक्ति ध्यान और साधना में अधिक एकाग्र हो पाता है।
- यह पूजा साधकों और तपस्वियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि यह उन्हें साधना में सफलता प्राप्त करने में सहायक होती है।
- माता शैलपुत्री की उपासना से व्यक्ति में धैर्य, आत्मबल और सहनशीलता का विकास होता है, जिससे जीवन में आने वाली कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति मिलती है।
- यह पूजा नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करती है और व्यक्ति के चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण करती है।
4. परिवार में सुख-शांति एवं समृद्धि
माता शैलपुत्री की कृपा से घर में सुख-शांति बनी रहती है और परिवार में समृद्धि आती है।
- माता की पूजा करने से घर में सकारात्मकता बनी रहती है और पारिवारिक कलह समाप्त होते हैं।
- माता शैलपुत्री घर-परिवार में प्रेम और आपसी सद्भाव बनाए रखने में मदद करती हैं।
- उनकी आराधना से घर में धन, सुख-समृद्धि और खुशहाली का संचार होता है।
- यदि किसी के घर में बार-बार आर्थिक संकट उत्पन्न हो रहा है, तो माता की पूजा करने से वित्तीय स्थिति में सुधार होता है और घर में बरकत आती है।
- माता शैलपुत्री की कृपा से संतान सुख की प्राप्ति भी होती है और संतान से जुड़ी समस्याओं का निवारण होता है।
