
कालाष्टमी व्रत (सबरि जयंती 20 अप्रैल )
परिचय कालाष्टमी व्रत भगवान कालभैरव की पूजा-अर्चना का विशेष पर्व है। इस दिन श्रद्धालु भगवान कालभैरव की आराधना कर उनसे सुख-समृद्धि, सुरक्षा एवं शत्रुनाश की कामना करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह व्रत प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, लेकिन मार्गशीर्ष मास की कालाष्टमी को विशेष महत्व दिया जाता है। इसी दिन सबरी जयंती भी मनाई जाती है, जो माता सबरी की भक्ति और श्रद्धा को समर्पित होती है।
भगवान कालभैरव का महत्व भगवान कालभैरव को शिवजी का ही एक रौद्र रूप माना जाता है। वे समय और न्याय के देवता हैं तथा भक्तों की हर प्रकार की बाधा को दूर करने वाले हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति विधिपूर्वक कालाष्टमी का व्रत रखता है और भगवान कालभैरव की आराधना करता है, उसके जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं।
सबरि जयंती का महत्व सबरि जयंती माता सबरी के तप और भक्ति का प्रतीक है। माता सबरी श्रीराम की परम भक्त थीं, जिन्होंने अपनी संपूर्ण आयु भगवान के दर्शन की प्रतीक्षा में व्यतीत कर दी। जब भगवान श्रीराम उनके आश्रम में पधारे, तब उन्होंने श्रद्धा से अपने जूठे बेर उन्हें अर्पित किए, जिसे भगवान राम ने प्रेमपूर्वक ग्रहण किया। यह घटना भक्ति की पराकाष्ठा का अनुपम उदाहरण है।
कालाष्टमी व्रत की विधि
- स्नान एवं संकल्प: प्रातः काल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
- भगवान कालभैरव की पूजा: भगवान कालभैरव की मूर्ति या चित्र को जल, दूध, पुष्प, धूप, दीप आदि से पूजन करें।
- कालभैरव मंत्र का जाप: इस दिन विशेष रूप से “ॐ कालभैरवाय नमः” मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है।
- भैरव चालीसा एवं आरती: कालभैरव चालीसा का पाठ करें और आरती उतारें।
- रात्रि जागरण: कालाष्टमी की रात भगवान भैरव की आराधना करते हुए जागरण करने का विशेष महत्व है।
- भोजन एवं भंडारा: इस दिन ब्राह्मणों एवं जरूरतमंदों को भोजन कराना अत्यंत पुण्यदायी होता है।
सबरि जयंती की पूजा विधि
- माता सबरी की कथा का श्रवण: इस दिन माता सबरी की कथा सुनने और सुनाने से भक्ति एवं श्रद्धा की भावना प्रबल होती है।
- श्रीराम का पूजन: भगवान श्रीराम की पूजा करें और भक्ति भाव से उनको भोग अर्पित करें।
- दान-पुण्य: जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, एवं अन्य आवश्यक वस्तुएं दान करना शुभ माना जाता है।
कालाष्टमी व्रत का महत्व
- इस व्रत के पालन से शत्रु बाधा, मानसिक तनाव और भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है।
- भगवान कालभैरव की कृपा से कार्यों में सफलता और उन्नति प्राप्त होती है।
- यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी होता है, जो अपने जीवन में अज्ञात भय से ग्रस्त होते हैं।
सबरि जयंती का संदेश सबरि जयंती हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति किसी भी बाहरी आडंबर से मुक्त होती है। यह त्याग, समर्पण और सच्चे प्रेम का प्रतीक है। माता सबरी की भक्ति हमें यह प्रेरणा देती है कि भगवान केवल प्रेम और श्रद्धा के भूखे होते हैं, न कि बाहरी दिखावे के।
निष्कर्ष कालाष्टमी व्रत और सबरी जयंती दोनों ही आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व हैं। जहां कालाष्टमी व्रत भगवान कालभैरव की उपासना द्वारा जीवन में सुरक्षा एवं समृद्धि प्रदान करता है, वहीं सबरी जयंती भक्ति एवं श्रद्धा की सजीव मिसाल है। इन दोनों पर्वों का पालन करने से जीवन में शांति, सुख और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
