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होलिका दहन पर 13 घंटे तक रहेगा भद्रा का प्रभाव, जानें शुभ मुहूर्त और सही समय ( 13 मार्च )

परिचय

होलिका दहन हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे होली के एक दिन पहले मनाया जाता है। इसे छोटी होली या चिता दहन के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और भक्त प्रह्लाद की भक्ति और होलिका के नाश की कहानी से जुड़ा हुआ है।

होलिका दहन की पौराणिक कथा

होलिका दहन की कथा भक्त प्रह्लाद, उनके पिता राजा हिरण्यकशिपु और उनकी बुआ होलिका से संबंधित है।

  1. हिरण्यकशिपु की कथा:
    हिरण्यकशिपु एक शक्तिशाली असुर राजा था, जिसने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया कि वह न दिन में मरेगा, न रात में, न मानव द्वारा, न पशु द्वारा, न अस्त्र से, न शस्त्र से, न भूमि पर, न आकाश में। यह वरदान पाकर वह अहंकारी बन गया और स्वयं को भगवान मानने लगा।
  2. प्रह्लाद की भक्ति:
    हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। यह देखकर हिरण्यकशिपु क्रोधित हो गया और उसने अपने पुत्र को विष्णु की भक्ति छोड़ने के लिए कहा, लेकिन प्रह्लाद ने मना कर दिया।
  3. होलिका का षड्यंत्र:
    हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने प्रह्लाद की रक्षा की। अंततः, हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से सहायता मांगी, जिसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका ने प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठने का प्रयास किया, लेकिन विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित बच गया और होलिका जलकर भस्म हो गई। इसी घटना की याद में होलिका दहन मनाया जाता है।

होलिका दहन का महत्व

  1. बुराई पर अच्छाई की जीत: यह त्योहार दर्शाता है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, सत्य और भक्ति की जीत हमेशा होती है।
  2. नकारात्मकता का अंत: होलिका दहन आत्मशुद्धि का पर्व है, जिसमें लोग अपनी नकारात्मकता और बुरी आदतों को आग में जलाने का संकल्प लेते हैं।
  3. फसल कटाई का पर्व: यह त्योहार कृषि समाज के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह नई फसल के आगमन और उत्सव का प्रतीक है।

होलिका दहन की परंपराएँ

होलिका दहन की तैयारियाँ फाल्गुन पूर्णिमा से कुछ दिन पहले शुरू हो जाती हैं। गाँव और शहरों में लोग लकड़ी, उपले और अन्य जलने योग्य सामग्री इकट्ठा करके होलिका की चिता बनाते हैं।

1. लकड़ी और उपलों का संग्रह

गाँवों और शहरों में लोग होलिका दहन के लिए लकड़ी, उपले और अन्य सामग्री इकट्ठा करते हैं। इसे गली-मोहल्लों के प्रमुख स्थानों पर स्थापित किया जाता है।

2. पूजा और कथा

होलिका दहन से पहले पूजा की जाती है, जिसमें नरसिंह भगवान, भक्त प्रह्लाद और होलिका की कथा सुनाई जाती है। परिवार की महिलाएँ पूजा करके होलिका की परिक्रमा करती हैं और अच्छे स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख-शांति की प्रार्थना करती हैं।

3. होलिका दहन

शाम के समय शुभ मुहूर्त में होलिका दहन किया जाता है। लोग अग्नि के चारों ओर परिक्रमा करके अपनी बुरी आदतों और नकारात्मक विचारों को खत्म करने का संकल्प लेते हैं।

4. नई फसल का भोग

कई स्थानों पर गेहूँ की बालियाँ और चने की फलियाँ होलिका की आग में सेंकी जाती हैं और प्रसाद के रूप में बांटी जाती हैं। यह नयी फसल का स्वागत करने का प्रतीक है।

होलिका दहन और पर्यावरण

आज के समय में पर्यावरण की सुरक्षा बहुत आवश्यक हो गई है। होलिका दहन में अधिक लकड़ी जलाने से वनों की कटाई और वायु प्रदूषण बढ़ता है। इसलिए, हमें इको-फ्रेंडली होलिका दहन को अपनाना चाहिए, जिसमें कम लकड़ी का उपयोग हो और प्राकृतिक सामग्री का अधिक उपयोग किया जाए।

भारत में होलिका दहन के प्रसिद्ध स्थान

भारत में होलिका दहन का उत्सव विभिन्न राज्यों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है।

  1. मथुरा और वृंदावन: यहाँ होलिका दहन विशेष रूप से धूमधाम से मनाया जाता है, जिसमें फूलों की होली खेली जाती है।
  2. बरसाना: यहाँ लट्ठमार होली प्रसिद्ध है, जिसमें महिलाएँ पुरुषों को लाठियों से मारती हैं।
  3. उज्जैन: महाकालेश्वर मंदिर में होली का अनोखा स्वरूप देखने को मिलता है।

निष्कर्ष

होलिका दहन केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन में सकारात्मकता और सत्य की विजय का संदेश भी देता है। यह त्योहार हमें यह सिखाता है कि सत्य की हमेशा जीत होती है, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। इस पर्व को मनाते समय हमें पर्यावरण का भी ध्यान रखना चाहिए और प्रदूषण मुक्त तरीके से उत्सव मनाना चाहिए।

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