
होलाष्टक आरंभ (7 मार्च )
परिचय
होलाष्टक का आरंभ होली के आठ दिन पहले से होता है। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक का समय होलाष्टक कहलाता है। यह काल विशेष रूप से उत्तर भारत में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इन आठ दिनों में कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण आदि वर्जित माने जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दौरान प्रकृति में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा सक्रिय होती है, जिससे वातावरण में बदलाव आता है।
होलाष्टक का महत्व
होलाष्टक का समय भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकशिपु की कथा से जुड़ा हुआ है। यह काल भक्तों के लिए भक्ति, साधना और संयम का समय होता है। यह समय देवी-देवताओं की उपासना, ध्यान और साधना के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
होलाष्टक का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व
होलाष्टक को ज्योतिषीय दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। इस दौरान ग्रहों की स्थिति में विशेष परिवर्तन होते हैं, जिससे शुभ कार्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। यही कारण है कि इस दौरान विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश और अन्य शुभ कार्य नहीं किए जाते।
होलाष्टक में वर्जित कार्य
- विवाह: इस अवधि में विवाह जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाते।
- गृह प्रवेश: नए घर में प्रवेश करने से बचना चाहिए।
- नया व्यापार या नया कार्य प्रारंभ: किसी भी नए व्यापार या योजना की शुरुआत इस दौरान नहीं करनी चाहिए।
- सगाई और अन्य मांगलिक कार्य: सगाई, उपनयन संस्कार और अन्य मांगलिक कार्यों को भी होलाष्टक के बाद ही किया जाता है।
होलाष्टक का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
होलाष्टक का वैज्ञानिक आधार भी है। इस दौरान ऋतु परिवर्तन होता है और गर्मी बढ़ने लगती है। इस समय शरीर में बीमारियों की संभावना अधिक होती है, इसलिए मानसिक और शारीरिक रूप से संयम रखने की सलाह दी जाती है।
होलाष्टक और होली का संबंध
होलाष्टक के अंत में होलिका दहन किया जाता है, जो असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है। भक्त प्रह्लाद की भक्ति, होलिका दहन और बुराई पर अच्छाई की जीत के संदेश को यह पर्व दर्शाता है।
होलाष्टक के दौरान किए जाने वाले कार्य
- भगवान विष्णु और नरसिंह भगवान की पूजा करें।
- होली के लिए लकड़ियां और उपले एकत्रित करें।
- दान-पुण्य करें, विशेष रूप से गरीबों को अन्न, वस्त्र और धन दान करें।
- भगवान शिव और हनुमान जी की आराधना करें।
- मंत्र जाप और हवन करें।
निष्कर्ष
होलाष्टक भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो हमें संयम, भक्ति और साधना का संदेश देता है। यह समय आध्यात्मिक उन्नति के लिए अनुकूल होता है। अतः हमें इन दिनों संयम और साधना का पालन करना चाहिए और होली के पर्व को हर्षोल्लास से मनाना चाहिए।
