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हिन्दू नव वर्ष का इतिहास

हिन्दू नव वर्ष का इतिहास, मान्यताएं और भ्रांतियां

हिन्दू नव वर्ष का इतिहास, मान्यताएं और भ्रांतियां

जैसा की हम सब जानते है की जल्दी ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से  हिन्दू नव वर्ष की शुरुआत हो रही है  हिन्दू नव वर्ष भारत की प्राचीन कालगणना का हिस्सा है, जिसे पूरे देश में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। यह न सिर्फ नया साल शुरू होने का संकेत देता है, बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक और पौराणिक दृष्टि से भी बहुत खास होता है। इस ब्लॉग में हम हिन्दू नव वर्ष के इतिहास, उससे जुड़ी मान्यताओं और इससे संबंधित भ्रांतियों के बारे में विस्तार से जानेंगे और कुछ ऐसी खास बताओं के बारे में बतायेगे तो आईये आज इस खास विषय पर चर्चा शुरू करते है। 

हिन्दू नव वर्ष का इतिहास

हिन्दू नव वर्ष की शुरुआत का संबंध सूर्य और चंद्रमा की गति से है। भारत में समय की गणना बहुत ही वैज्ञानिक तरीके से की जाती रही है जो की पूर्ण रूप से वैदिक पद्धति पर निर्भर है जैसा की हम सब जानते है हिन्दू धर्म के सबसे प्रमुख धर्म ग्रंथ वेद है (सामवेद , यजुर्वेद, ऋग्वेद तथा अथर्वेद  ) जिन्हे छह भागों में बाटा गया है शिक्षा ,कल्प, निरुद्थ ,छंद , व्याकरण , ज्योतिष। ज्योतिष के दो भाग होते है फलित और गणित भारतीय कालगणना सम्पूर्ण रूप से ज्योतिष पर निर्भर होती है और ज्योतिष सम्पूर्ण रूप से वैदिक गणित और खगोलीय पिण्डो की गति पर निर्भर है बड़े आश्चर्य की बात है इतनी वैज्ञानिक पद्धति का  मज़ाक़ बनाना आज के समय  एक आम बात हो गयी है इस की सबसे बड़ी वजह आजादी के बाद भारत में बनी सरकारों की शिक्षा नीति रही है जिसके जरिये सालों तक हमारे लोगो को उनके इतिहास एवं संस्कृति से दूर रखा गया जाने माने उपन्यासकार  बीएस नैपोल (विद्याधर सूरजप्रसाद नैपाल ) ने अपनी किताब भारत: एक घायल सभ्यता(India: A Wounded Civilization) में लिखा की भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहाँ के बच्चों को अपनी संस्कृति और सभ्यता से दूर करने वाला इतिहास पढ़ाया जाता है जानकारी के लिए बतादे की बीएस नैपोल वे व्यक्ति है जिन्हे साल 2001 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था.  तो आईये हिन्दू नव वर्ष के बारे में विश्तार से जानते है। 

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हिन्दू नव वर्ष की शुरुआत का संबंध सूर्य और चंद्रमा की गति से है। भारत में समय की गणना बहुत ही वैज्ञानिक तरीके से की जाती रही है। हिन्दू नव वर्ष का आधार मुख्य रूप से विक्रम संवत और शक संवत हैं। परन्तु  इनके अलावा भी कई और पंचाँग मौजूद है जिनके बारे सामान्यता लोग नहीं जानते आईये हम आपो इनके बारे में क्रमश: बताते है   

हिन्दू धर्म के सभी पंचांग और कालगणना प्रणालियाँ

विक्रम संवत की शुरुआत राजा विक्रमादित्य ने की थी, जो 57 ईसा पूर्व से शुरू हुआ। लेकिन इससे पहले भी हिंदू धर्म में विभिन्न कालगणना प्रणालियाँ प्रचलित थीं। ये सभी पंचांग सूर्य और चंद्रमा की गति पर आधारित थीं।

1. ब्रह्म संवत (सृष्टि संवत)

  • यह सबसे प्राचीन संवत माना जाता है। 
  • इसकी गणना ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि रचना के समय से की जाती है। 
  • वर्तमान में ब्रह्म संवत लगभग 1,97,29,125 वर्ष (1.97 करोड़ वर्ष) का हो चुका है। 
  • इसे धार्मिक मान्यताओं में महत्वपूर्ण माना जाता है, लेकिन दैनिक जीवन में इसका उपयोग नहीं किया जाता। 

2. युधिष्ठिर संवत (कलियुग संवत)

  • इस संवत की गणना कलियुग के आरंभ से की जाती है। 
  • माना जाता है कि कलियुग 3102 ईसा पूर्व में शुरू हुआ 
  • इसे युधिष्ठिर संवत भी कहा जाता है, क्योंकि यह महाभारत काल के बाद प्रारंभ हुआ। 
  • आज के अनुसार कलियुग संवत 5125वां वर्ष चल रहा है (2024 ई. में)। 

3. श्रीराम संवत

  • इस संवत की शुरुआत भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक के समय हुई थी। 
  • यह संवत 5114 ईसा पूर्व से माना जाता है। 
  • यह पंचांग रामराज्य की स्थापना का प्रतीक था और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। 

4. महाभारत संवत

  • यह संवत महाभारत युद्ध के बाद शुरू हुआ। 
  • महाभारत का युद्ध लगभग 3137 ईसा पूर्व में हुआ था। 
  • यह संवत उन राजाओं द्वारा अपनाया गया था जो महाभारत युद्ध में विजयी हुए थे। 

5. शक संवत

  • इसे राजा शालिवाहन ने 78 ईस्वी में शुरू किया। 
  • भारत सरकार द्वारा इसे राष्ट्रीय पंचांग के रूप में मान्यता दी गई है। 
  • इसे मुख्य रूप से दक्षिण भारत और सरकारी कार्यों में उपयोग किया जाता है।

 

  • भारत सरकार ने 22 मार्च, 1957 को शक संवत को अपनाया था. इस दिन को भारांग के तौर पर भी जाना जाता है. शक संवत पर आधारित कैलेंडर को भारत का राष्ट्रीय पंचांग माना जाता है. 

 

6. विक्रम संवत

  • यह 57 ईसा पूर्व में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य द्वारा शुरू किया गया था। 
  • यह चंद्र-सौर पंचांग पर आधारित होता है, जिसका नया साल चैत्र मास की प्रतिपदा को आता है। 
  • उत्तर भारत में हिन्दू नव वर्ष इसी पंचांग के अनुसार मनाया जाता है।

हिन्दू नव वर्ष से जुड़ी सांस्कृतिक मान्यताएं

हिन्दू नव वर्ष को भारत के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न नामों से मनाया जाता है:

  1. गुड़ी पड़वा – महाराष्ट्र और गोवा में मनाया जाता है। 
  2. उगादी – आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में मनाया जाता है। 
  3. चेटीचंड – सिंधी समाज के लोग इसे झूलेलाल जयंती के रूप में मनाते हैं। 
  4. विक्रम संवत नव वर्ष – उत्तर भारत में इसे चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के रूप में मनाया जाता है। 
  5. बैसाखी – पंजाब में इसे फसल उत्सव के रूप में मनाया जाता है। 
  6. पोइला बैसाख – पश्चिम बंगाल में इसे बंगाली नव वर्ष के रूप में मनाते हैं। 
  7. विशु – केरल में इसे मलयालम नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। 

हिन्दू पंचाग से जुडी भ्रांतियां 

 

भ्रांति 1: हिन्दू पंचांग सिर्फ धार्मिक तिथियों के लिए होता है

सच्चाई:

  • हिन्दू पंचांग सिर्फ पूजा-पाठ और त्योहारों के लिए नहीं, बल्कि खगोलीय घटनाओं, ऋतुओं और कृषि कार्यों की गणना के लिए भी इस्तेमाल होता है। 
  • यह सूर्य और चंद्रमा की गति पर आधारित है, जिससे मौसम, फसल चक्र और दिन-रात के सही आकलन में मदद मिलती है। 
  • पंचांग के आधार पर ही किसान बुआई और कटाई का सही समय तय करते हैं। 

भ्रांति 2: हिन्दू नव वर्ष 1 जनवरी को होता है

सच्चाई:

  • हिन्दू नव वर्ष चैत्र मास की प्रतिपदा को आता है, जो आमतौर पर मार्च-अप्रैल में होता है। 
  • 1 जनवरी का ग्रेगोरियन कैलेंडर सूर्य आधारित है, जबकि हिन्दू पंचांग चंद्र-सौर गणना पर आधारित है। 
  • हिन्दू नव वर्ष का वैज्ञानिक आधार ऋतुओं से जुड़ा है, जिससे यह खरीफ और रबी की फसलों के परिवर्तन के समय आता है।

भ्रांति 3: हिन्दू पंचांग में हर साल त्योहारों की तारीख बदल जाती है, इसलिए यह गलत है

सच्चाई:

  • हिन्दू पंचांग चंद्र-सौर गणना पर आधारित होता है, जबकि ग्रेगोरियन कैलेंडर सिर्फ सूर्य आधारित है। 
  • हर साल सूर्य और चंद्रमा की गति में बदलाव होता है, जिससे हिन्दू पंचांग के अनुसार तिथियाँ बदल सकती हैं। 
  • उदाहरण: दीपावली, होली, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी जैसे त्योहार हर साल थोड़े अलग दिनों पर आते हैं, लेकिन यह पूरी तरह वैज्ञानिक प्रक्रिया पर आधारित है। 

भ्रांति 4: सिर्फ विक्रम संवत और शक संवत ही मान्य पंचांग हैं

सच्चाई:

  • हिन्दू धर्म में कई प्रकार के पंचांग प्रचलित हैं, जिनमें विक्रम संवत, शक संवत, तमिल पंचांग, मलयालम पंचांग, बंगाली पंचांग आदि शामिल हैं। 
  • सभी पंचांग अपने क्षेत्रीय परंपराओं के अनुसार सही हैं और उनमें बस गणना की विधि में अंतर होता है। 

भ्रांति 5: राहु काल, गुलिक काल और यमगंड दोष केवल अंधविश्वास हैं

सच्चाई:

  • राहु काल, गुलिक काल और यमगंड दोष खगोलीय गणनाओं पर आधारित समय अवधियाँ हैं, जो ग्रहों की स्थिति के अनुसार बदलती रहती हैं। 
  • यह अवधियाँ ऊर्जा परिवर्तन से जुड़ी होती हैं, जिनका प्रभाव हमारे मानसिक और शारीरिक स्तर पर भी देखा गया है। 
  • वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह समय अंतराल विद्युत चुम्बकीय प्रभावों और सूर्य-चंद्रमा की ग्रैविटी के आधार पर परिवर्तन लाते हैं। 

भ्रांति 6: हिन्दू पंचांग में ‘अशुभ’ और ‘शुभ’ समय तय करना अंधविश्वास है

सच्चाई:

  • शुभ और अशुभ समय की गणना खगोलीय और ज्योतिषीय आधार पर की जाती है। 
  • ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति का प्रभाव पृथ्वी पर भी होता है, जैसे चंद्रमा का समुद्र की ज्वार-भाटा पर प्रभाव पड़ता है। 
  • इसी सिद्धांत पर शुभ मुहूर्त का निर्धारण किया जाता है, ताकि किसी कार्य की सफलता की संभावना अधिक हो। 

भ्रांति 7: हिन्दू पंचांग में 12 महीने नहीं होते, इसलिए यह गलत है

सच्चाई:

  • हिन्दू पंचांग में भी 12 महीने होते हैं, लेकिन यह चंद्र मास पर आधारित होते हैं। 
  • इन 12 महीनों के नाम हैं – चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन। 
  • हर तीसरे वर्ष एक अधिक मास (मलमास) जोड़ दिया जाता है, जिससे पंचांग की गणना संतुलित रहती है। 

 

भ्रांति 8: हिन्दू पंचांग पुराना हो गया, अब इसे छोड़ देना चाहिए

सच्चाई:

  • हिन्दू पंचांग पूरी तरह वैज्ञानिक है और आधुनिक गणनाओं से भी मेल खाता है। 
  • इसमें ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति का अध्ययन किया जाता है, जो नासा और अन्य वैज्ञानिक संस्थाओं की गणनाओं से भी मेल खाता है। 
  • समय की सही गणना के लिए पंचांग आज भी अत्यधिक सटीक और उपयोगी है।

 

हिन्दू पंचांग को लेकर कुछ रोचक तथ्य

 

  1. सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की क्रिया का पता लगाना :- सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की क्रिया का पता लगाना :- हम सब ने अपने जीवन में कभी न कभी एक बात पर गौर जरूर किया होगा की जब भी चंद्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण की घटना होती है तो हमारे मंदिरों में पूजा पाठ यज्ञ हवन आदि को निषेद कर दिया जाता है परन्तु हम इस बात के बारे में नहीं सोचते की आज के समय में जब मनुष्य चाँद तक पहुंच गया है तब अंतरिक्ष में तमाम सेटलाइट छोड़े जा चुके है तब चंद्र ग्रहण और  सूर्य ग्रहण की घटना का पता लगाना आसान है किन्तु जब ये सब नहीं था तो सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की घटना का पता कैसे लगाया जाता होगा। इसका सबसे अच्छा जवाब हमारा हिन्दू पंचांग और ज्योतिष विद्या है जिसके जरिये आज से हज़ारों लाखों बर्षों से सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की घटना का पता लगाया जाता रहा है।

  • सृष्टि के निर्माण के सम्बन्ध में धारणाएं :- जब भी किसी व्यक्ति से पुछा जाता है की ये दुनियाँ कब बनी तो हममे से अधिकतर लोगो के पास इसका कोइ ठोस उत्तर नहीं होता हालाँकि कई धर्म ग्रंथों में अलग – अलग धारणाएं बनी हुई है जैसे की कई धर्म ग्रंथों में बताया गया है की ये दुनिया लगभग 20000 साल पहले बनी  तो कही 10000 साल पहले बनी परन्तु किसी के भी पास इसका कोइ सटीक जवाब नहीं है परन्तु सनातन धर्म के सबसे प्राचीन पंचांग ब्रह्मसम्वत के अनुसार निश्चित रूप से बताया गया है की ये दुनिया आज से  1,97,29,125 वर्ष पूर्व बनी  यह दुनिया का एक मात्र ऐसा कैलेंडर है जो एक निश्चित समय बताता है की आखिर ये दुनिया कब बनी। मशहूर यहूदी वैज्ञानिक काल सैगन जो की नासा के बहुत बड़े वैज्ञानिक हुए उन्होंने अपनी क़िताब कॉसमॉस: ए पर्सनल वॉयेज में इसका जिक्र किया है। 

हम सब ने वाईजऱ सेटेलाइट के बारे में अवश्य पढ़ा और सुना होगा जो की मौजूदा दौर में सौरमंडल के पार जा चूका है इस सेटेलाइट पर परग्रही सभ्याताओं के लिए एक संदेश अंकित है जिसे वैज्ञानिक काल सैगन डिजाइन किया था जिसमे उन्होंने इस बात का जिक्र की कैसे सिर्फ हिन्दू धर्म में ब्रह्माण्ड के निरंतर सृजन और विध्वंश की क्रिया के बारे में बताया गया है  

 

निष्कर्ष

हिन्दू नव वर्ष केवल एक नया साल शुरू होने का दिन नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ पर्व है। यह सृष्टि की शुरुआत, भगवान राम के राज्याभिषेक, नवरात्रि के पहले दिन और नए ऊर्जा चक्र के आरंभ का प्रतीक है।

हमें अपनी प्राचीन परंपराओं को समझकर सही तरीके से उनका पालन करना चाहिए और उनसे जुड़ी भ्रांतियों को दूर करना चाहिए। और उसकी वैज्ञानिकता के बारे में जानने की कोशिश करनी चाहिए और अपनी महान विरासत पर गर्व करना चाहिए। लेख के अंत में भारत के पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी जी की चंद पंक्तियाँ जो हर सनातनी हिन्दू कोई उसकी सभ्यता पर गर्व करने की प्रेरणा देती है। 

मै अखिल विश्व का गुरु महान देता विद्या का अमर दान

मैने दिखलाया मुक्तिमार्ग मैने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान

मेरे वेदों का ज्ञान अमर मेरे वेदों की ज्योति प्रखर

मानव के मन का अंधकार क्या कभी सामने सकठका सेहर

मेरा स्वर्णभ मे गेहर गेहेर सागर के जल मे चेहेर चेहेर

इस कोने से उस कोने तक कर सकता जगती सौरभ मै

हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

🙏🎊 आप सभी को हिन्दू नव वर्ष की शुभकामनाएँ! 🙏🎊