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अमरनाथ यात्रा

अमरनाथ यात्रा की कहानी और उसका आध्यात्मिक महत्व

भूमिका  

भारत एक ऐसा देश है जहाँ आस्था और अध्यात्म का लोगो के जीवन में अभिन्न स्थान हैं। यहाँ हर क्षेत्र में देवी-देवताओं के अनेक मंदिर और तीर्थ स्थल हैं, जिनमें से  कुछ को देवी देवताओ का  निवास माना जाता है ।जिनमे से एक अमरनाथ तीर्थ स्थल है जिसको तीर्थो का तीर्थ कहा गया है अमरनाथ एक पवित्र और रहस्यमय स्थान है अमरनाथ गुफा, भगवान शिव को समर्पित है।कहा जाता है की यही पर भगवान  शिव ने माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था|  प्रत्येक वर्ष लाखों श्रद्धालु अमरनाथ यात्रा करते हैं, जो हिमालय की ऊँचाइयों पर स्थित है इस पवित्र गुफा में स्थापित हिमलिंग के दर्शन के लिए लोग अपने जीवन की कठिनतम यात्रा तय करते हैं। 

इस लेख में हम जानेंगे इस यात्रा से जुडी पौराणिक कथा एवं इसके  आध्यात्मिक महत्व, यात्रा मार्ग और इससे जुडी कुछ विशेष बातें | 

🌄 अमरनाथ गुफा का परिचय

अमरनाथ गुफा भारत देश के जम्मू-कश्मीर प्रदेश की राजधानी श्री-नगर में स्थित है यह समुद्र तल से लगभग 13,600 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यह गुफा बर्फ से ढकी पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित है और हर वर्ष श्रावण मास (जुलाई–अगस्त) में यहाँ बर्फ का प्राकृतिक शिवलिंग बनता है। प्राकृतिक रूप से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहा जाता है यह शिवलिंग पूर्णिमा तक बढ़ता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे घटने लगता है।

इस अद्भुत प्राकृतिक घटना को शिव के जीवंत रूप के दर्शन माना जाता है। यह बर्फ का शिवलिंग ही अमरनाथ यात्रा का केंद्रबिंदु है।

अमरनाथ यात्रा की पौराणिक कथा  

अमरनाथ गुफा के साथ एक अत्यंत रोचक और गूढ़ पौराणिक कथा जुड़ी है।

माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा – “हे नाथ! आप अमर क्यों हैं? कृपया मुझे अमरता का रहस्य बताइए।”

भगवान शिव ने पार्वती को यह रहस्य बताने का निश्चय किया, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी तय किया कि वह स्थान अत्यंत एकांत और पवित्र होना चाहिए। इसके लिए उन्होंने अमरनाथ गुफा का चयन किया|  भगवान शिव ने माता पार्वती को इसी गुफा में कथा सुनाई थी, जिसमें अमरनाथ की यात्रा और

 उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन किया गया है । यह कथा कालांतर में अमरकथा नाम से विख्यात है ।

👉 यात्रा में आने वाले कुछ विशेष स्थान निम्न है :-

 

पहलगाम (बैलगांव): यहाँ भगवान शिव ने अपना वाहन नंदी (बैल) त्यागा।

चंदनबाड़ी: यहाँ उन्होंने चंद्रमा को अपने जटाओं से उतारा।

शेषनाग झील : यहाँ उन्होंने अपने गले का सर्प छोड़ा 

महागुण पर्वत: जहाँ उन्होंने अपने पुत्र गणेश को भी त्याग दिया।

पंचतरिणी: यहाँ उन्होंने पंच महाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) को त्याग दिया।

🕊️ अमर कबूतरों की कहानी:

 

कहते हैं जब भगवान शिव अमरता का रहस्य बता रहे थे, तब एक कबूतर का जोड़ा भी गुफा में छिपकर यह कथा सुन रहा था।जिसे सुनकर शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गये थे। गुफा में आज भी श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई दे जाता है, जिन्हें श्रद्धालु अमर पक्षी बताते हैं। ऐसी मान्यता भी है कि जिन श्रद्धालुओं को यह कबूतरों का जोड़ा दिखाई देता है, उन्हें भगवान शिव माता पार्वती अपने प्रत्यक्ष दर्शनों से निहाल करके उस प्राणी को मुक्ति प्रदान करते हैं।

मोक्षदायी यात्रा:- अमरनाथ यात्रा को मोक्ष प्रदान करने वाली यात्रा भी माना जाता है। मान्यता है कि जो भक्त इस कठिन यात्रा को श्रद्धा से पूर्ण करता है, उसे भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन के पाप नष्ट होते हैं।

शिवलिंग का चमत्कारिक रूप:- अमरनाथ गुफा की परिधि लगभग डेढ़ सौ फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूँदें जगह-जगह टपकती रहती हैं और इन्ही हिम बूँदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है यह बर्फ का बना शिवलिंग किसी चमत्कार से कम नहीं। वैज्ञानिकों का मानना है की यह शिवलिंग प्राकृतिक बर्फ के जमने से बनता है, लेकिन श्रद्धालुओं के लिए यह शिव का जीवित रूप है।

भक्ति, साहस और तपस्या का संगम:- अत्यधिक ऊचाई होने के कारण ऑक्सीजन की कमी, बर्फीली हवाएँ, दुर्गम जटिल रास्ते होने के बावजूद लाखों श्रद्धालु  “हर हर महादेव” के जयकारों के साथ इस यात्रा को पूर्ण करते हैं। यह भक्ति की शक्ति और मानव का भगवान पर अटूट विश्वास और आस्था को दर्शाता है।

धार्मिक सौहार्द का प्रतीक:- अमरनाथ यात्रा हिन्दू धर्म से जुड़ी होने के बावजूद यह धार्मिक एकता का प्रतीक बन गई है। मुस्लिम समुदाय के लोग “pony service”, “tents” और “Langar seva” में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

🚶‍♂️ अमरनाथ यात्रा का मार्ग और प्रबंधन 

अमरनाथ यात्रा के लिए पंजीकरण आवश्यक होता है, सुरक्षा के दृष्टिकोण से सरकार द्वारा सीमित संख्या में यात्रियों को प्रतिदिन अनुमति दी जाती है।

प्रमुख यात्रा मार्ग:

  • पहलगाम :- पहलगाम जम्मू से ३१५ किलोमीटर की दूरी पर है। यह एक पर्यटक स्थल भी है और यहाँ लोग प्राकृतिक सौंदर्य भी देखने आते है । पहलगाम तक जाने के लिए जम्मू-कश्मीर पर्यटन केंद्र से सरकारी बस उपलब्ध रहती है। पहलगाम में संस्थाओं की ओर से श्रद्धालुओ के लिए लंगर की व्यवस्था की जाती है। तीर्थयात्रियों की पैदल यात्रा यहीं से आरंभ होती है।

 

  • चंदनवाड़ी:- पहलगाम के बाद पहला पड़ाव चंदनवाड़ी है, जो पहलगाम से आठ किलोमीटर की दूरी पर है। इसके ठीक आगे पिस्सु घाटी की चढ़ाई शुरू होती है। कहा जाता है कि पिस्सु घाटी पर देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान लड़ाई हुई जिसमें राक्षसों की हार हुई।

 

  • शेषनाग झील:- चंदनवाड़ी से १४ किलोमीटर दूर शेषनाग में अगला पड़ाव है। यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और खतरनाक है।यहीं पर पिस्सू घाटी के दर्शन होते हैं। अमरनाथ यात्रा में पिस्सू घाटी काफी जोखिम भरा स्थल है | यहाँ पर्वतमालाओं के बीच नीले पानी की खूबसूरत झील हैश्रद्धालुओ के मुताबिक शेषनाग झील में शेषनाग का वास आज भी है और चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील के बाहर दर्शन देते हैं, लेकिन यह दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होते हैं।

 

  • पंचतारिणी :- शेषनाग से पंचतारिणी की दूरी सिर्फ आठ मील के फासले पर है।यहाँ ५ नदिया एक साथ बेहेने के कारण इस स्थान का नाम पंचतारिणी कहा गया है अत्यधिक उचाई के कारण यहाँ ठण्ड ज्यादा होती है जिसके कारण यहाँ ऑक्सीजन की कमी होने लगती है 

यहाँ से अमरनाथ के गुफा की दूरी केवल आठ किलोमीटर रह जाती हैं यहाँ से  पहुंच कर श्रद्धालु पूजा अर्चना करते है  यह रास्ता काफी कठिन है, लेकिन अमरनाथ की पवित्र गुफा में पहुँचते ही सफर की सारी थकान पल भर में छू-मंतर हो जाती है और अद्भुत आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है।

विशेषता: यह प्राचीन और पारंपरिक मार्ग है।

पड़ाव: पहलगाम → चंदनबाड़ी → शेषनाग → पंचतरिणी → अमरनाथ गुफा

बालटाल मार्ग:- बालटाल से अमरनाथ गुफा की दूरी केवल १४ किलोमीटर है लेकिन यह बहुत ही जटिल रास्ता है, इसीलिए सरकार इस मार्ग को सुरक्षित नहीं मानती और अधिकतर श्रद्धालुओ को पहलगाम के रास्ते से जाने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन कुछ रोमांचक लोग जो जोखिम लेने का शौक रखते है  वे लोग इस मार्ग से यात्रा करना पसंद करते हैं। इस मार्ग से जाने वाले लोग अपने जोखिम पर यात्रा करते है। रास्ते किसी भी प्रकार की कोई अनहोनी होती है तो भारत सरकार इस जोखिम की कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है 

विशेषता: यह मार्ग छोटा है लेकिन अधिक कठिन है। एक दिन में यात्रा संभव है, लेकिन तीव्र चढ़ाई है।

यात्रा की अवधि:- यात्रा हर वर्ष जुलाई से अगस्त तक (श्रावण पूर्णिमा तक) आयोजित होती है। कुछ वर्ष यह यात्रा 40 दिन की होती है, और कभी-कभी सुरक्षा या मौसम के कारण इसकी अवधि घटा दी जाती है। 

और अधिक जानकारी के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करे :-  https://en.wikipedia.org/wiki/Amarnath_Temple

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