
षटतिला एकादशी
षटतिला एकादशी: तिल-तिल बढ़े पुण्य, जानिए महत्व, मुहूर्त, पूजा विधि और कथा
षटतिला एकादशी: तिल-तिल बढ़े पुण्य, जानिए महत्व, मुहूर्त, पूजा विधि और कथा
षटतिला एकादशी, माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इसका नाम ‘षटतिला’ इसलिए पड़ा है क्योंकि इस दिन तिल का विशेष महत्व होता है। षटतिला एकादशी के दिन तिल का छह प्रकार से उपयोग किया जाता है – स्नान में तिल के तेल का उपयोग, तिल का उबटन, तिल के जल से तर्पण, तिल का भोजन, तिल का दान और तिल का हवन। मान्यता है कि इस दिन तिल के प्रयोग से मनुष्य के सभी पाप नष्ट होते हैं और पुण्यफल की प्राप्ति होती है। आइए, षटतिला एकादशी के महत्व, मुहूर्त, पूजा विधि और इससे जुड़ी कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं।
षटतिला एकादशी का महत्व:
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशी तिथियां आती हैं, जिनमें से षटतिला एकादशी का अपना विशेष स्थान है। यह व्रत माघ मास में आता है, जब ठंड अपने चरम पर होती है। तिल की तासीर गर्म होती है, इसलिए इस मौसम में तिल का सेवन स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक माना गया है। धार्मिक दृष्टि से देखें तो षटतिला एकादशी के दिन तिल का दान करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है, इसलिए इस दिन उनकी पूजा-अर्चना करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
षटतिला एकादशी 2025 तिथि और शुभ मुहूर्त:
साल 2025 में षटतिला एकादशी 25 जनवरी को मनाई जाएगी।
- ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 5:26 मिनट से 6:19 मिनट तक
- विजय मुहूर्त: दोपहर 2:21 मिनट से 3:03 मिनट तक
- गोधूलि मुहूर्त: शाम 5:52 मिनट से 6:19 मिनट तक
- निशिता मुहूर्त: रात 12:07 मिनट से 01:00 बजे तक
षटतिला एकादशी पूजा विधि:
षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा स्थल को साफ करके वहां भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। भगवान विष्णु को गंगाजल से स्नान कराएं और उन्हें पीले वस्त्र, फूल, चंदन, रोली, सिंदूर आदि अर्पित करें। तिल के तेल का दीपक जलाएं और भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना भी इस दिन अत्यंत शुभ माना जाता है। भगवान विष्णु को तिल से बने नैवेद्य का भोग लगाएं। इस दिन तिल का दान करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। आप तिल, वस्त्र, अन्न, या अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान कर सकते हैं। एकादशी के दिन व्रत रखें और सात्विक भोजन ही ग्रहण करें। शाम को भगवान विष्णु की आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
षटतिला एकादशी की कथा:
एक समय की बात है, देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से पूछा कि षटतिला एकादशी का क्या महत्व है और इसे कैसे मनाया जाता है? भगवान विष्णु ने इंद्र से कहा कि इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। उन्होंने बताया कि इस दिन तिल का छह प्रकार से उपयोग करना चाहिए। एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक गरीब ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का व्रत रखा था, लेकिन उसके पास तिल नहीं थे। उसने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने एक भिखारी के रूप में उसके घर जाकर उससे भिक्षा मांगी। ब्राह्मणी ने उसे अपनी सारी चीजें दान कर दीं, यहां तक कि अपने तिल भी। इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे दिव्य रूप में दर्शन दिए और उसे मोक्ष प्रदान किया। इसलिए, षटतिला एकादशी के दिन तिल का दान करने का विशेष महत्व है।
षटतिला एकादशी के दिन क्या करें:
- प्रातः काल उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करें।
- तिल का छह प्रकार से उपयोग करें।
- तिल का दान करें।
- एकादशी का व्रत रखें।
- सात्विक भोजन ग्रहण करें।
- भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें।
- विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
- गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करें।
षटतिला एकादशी के दिन क्या न करें:
- झूठ न बोलें।
- किसी को अपशब्द न कहें।
- क्रोध न करें।
- हिंसा न करें।
- मांस और मदिरा का सेवन न करें।
- तुलसी के पत्ते न तोड़ें।
- किसी भी प्रकार का तामसिक भोजन न करें।
षटतिला एकादशी का व्रत मनुष्य को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और तिल का दान करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि और शांति का आगमन होता है। यह व्रत पापों का नाश करने वाला और पुण्य फल प्रदान करने वाला माना गया है।
