
(भगवान विष्णु की कथा)
श्री राम अवतार (भगवान विष्णु की कथा)
भगवान विष्णु ने अपने सातवें अवतार के रूप में श्रीराम का अवतार लिया। यह अवतार अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए हुआ था। श्रीराम को “मर्यादा पुरुषोत्तम” कहा जाता है क्योंकि उन्होंने जीवनभर धर्म और आदर्शों का पालन किया।
श्रीराम का जन्म
अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानियाँ थीं, लेकिन उन्हें संतान नहीं थी। उन्होंने पुत्रेष्ठि यज्ञ किया, जिसके फलस्वरूप उन्हें चार पुत्र प्राप्त हुए—
- श्रीराम (कौशल्या के पुत्र)
- भरत (कैकेयी के पुत्र)
- लक्ष्मण और शत्रुघ्न (सुमित्रा के पुत्र)
श्रीराम विष्णु के अवतार थे और लक्ष्मण उनके शेषनाग के अवतार।
राम का वनवास
श्रीराम का विवाह माता सीता से हुआ, जो माता लक्ष्मी का अवतार थीं। जब राजा दशरथ ने राम को अयोध्या का राजा बनाने का निर्णय लिया, तब कैकेयी की दासी मंथरा ने कैकेयी को बरगलाया। कैकेयी ने अपने दो वरदान माँगे—
- भरत को अयोध्या का राजा बनाया जाए।
- श्रीराम को 14 वर्षों के लिए वनवास भेजा जाए।
धर्मपरायण श्रीराम ने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए माता सीता और लक्ष्मण के साथ वनवास को स्वीकार कर लिया।
रावण का वध
वन में रहते हुए लंका के राजा रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया। श्रीराम ने वानरराज सुग्रीव, हनुमान, जामवंत और उनकी वानर सेना की सहायता से लंका पर चढ़ाई की। 10 दिनों तक चले घोर युद्ध में उन्होंने अधर्मी रावण का वध किया और माता सीता को वापस ले आए।
अयोध्या वापसी और रामराज्य
14 वर्ष का वनवास पूरा करने के बाद श्रीराम अयोध्या लौटे और रामराज्य की स्थापना की, जहाँ न्याय, धर्म और सुख-समृद्धि का शासन था।
शिक्षा:
श्रीराम अवतार हमें सत्य, धर्म, कर्तव्य, त्याग और मर्यादा का पालन करने की प्रेरणा देता है। उनका जीवन बताता है कि सत्य की विजय सदैव होती है और अधर्म का नाश निश्चित है।
