Loading...

लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानु॥सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति। सहज कृपन सन सुंदर नीति॥1॥

श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं—

“लक्ष्मण! धनुष-बाण लाओ, मैं इस अग्निबाण से समुद्र को सुखा दूँ।
क्योंकि दुष्ट से विनय (प्रार्थना) करना, कुटिल (धूर्त) से प्रेम करना,
कृपण (लोभी) से सुंदर नीति की अपेक्षा करना व्यर्थ है।”


संदर्भ एवं प्रसंग:

यह चौपाई रामचरितमानस के लंका कांड से ली गई है। जब श्रीराम समुद्र से विनम्रतापूर्वक अनुरोध करते हैं कि वह रास्ता दे, लेकिन समुद्र उनकी बात नहीं मानता, तब श्रीराम क्रोधित होकर लक्ष्मण से अग्निबाण मंगाने के लिए कहते हैं। श्रीराम बताते हैं कि दुष्टों के साथ विनम्रता दिखाना व्यर्थ होता है।


शिक्षा:

दुष्टों से प्रेम और कुटिलों से नीति की अपेक्षा व्यर्थ है।
जहां प्रेम और विनय से काम न बने, वहां दृढ़ता आवश्यक है।
अत्यधिक सहनशीलता कभी-कभी दुर्बलता बन जाती है।

यह चौपाई नीति, राजनीति और व्यवहारिक जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी है।

Scroll to Top