
माता महागौरी की कथा
माता महागौरी की कथा एवं पूजा विधि
अब नवरात्रि का त्यौहार अपने अंतिम दौर में पहुंच चुका है यकीनन आप भी नवरात्रि के इन अंतिम दिनों में माता की भक्ति से सराबोर हो चुके होंगे। देवी भगवती पुराण के अनुसार नवरात्र के आठवे दिन माता महागौरी की पूजा की जाती है जिन्हे 10 महाविद्याओं की स्वामिनी और भगवान शिव की अर्धांगिनी माना जाता है आइये आज हम उनकी महिमा एवं माँ की पूजा विधि के बारे में विश्तार से जानते है।
माता महागौरी की कथा
माता महागौरी नौ दुर्गा के आठवें स्वरूप के रूप में पूजनीय हैं। नवरात्रि के आठवें दिन इन्हीं की उपासना की जाती है। “महागौरी” नाम में ही उनकी महिमा छिपी हुई है – “महा” यानी महान और “गौरी” यानी उज्ज्वल, श्वेत, निर्मल रूप। मां महागौरी का स्वरूप अत्यंत शांत, कोमल और सौम्य है, लेकिन उनका तेज और शक्ति असाधारण है। वे भक्तों के समस्त पापों और कष्टों का अंत करने वाली हैं।
इस लेख में हम जानेंगे माता महागौरी की पौराणिक कथा, उनका स्वरूप, महत्व, और उनकी पूजा विधि, ताकि आप नवरात्रि के इस शुभ अवसर पर पूरी श्रद्धा और विधिपूर्वक उनकी आराधना कर सकें।
माता महागौरी का स्वरूप
महागौरी का शरीर पूर्ण रूप से श्वेत (उज्ज्वल) है। वे सफेद वस्त्र धारण करती हैं और सफेद वृषभ (बैल) पर सवारी करती हैं। उनके चार हाथ होते हैं – एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में डमरू होता है, शेष दो हाथ अभय और वर मुद्रा में होते हैं। उनका मुखमंडल अत्यंत शांतिपूर्ण और करुणामयी होता है। वे शांति, करुणा और शक्ति की प्रतीक मानी जाती हैं।
माता महागौरी की कथा
पुराणों के अनुसार, जब मां पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया, तब कई वर्षों तक उन्होंने घोर जंगलों में रहकर केवल पत्तों और हवा पर निर्वाह किया। उनके तप से उनका शरीर काला और मलिन हो गया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें स्वीकार कर लिया।
भगवान शिव के कृपा से गंगा जल से स्नान करने पर मां पार्वती का शरीर पुनः उज्ज्वल, श्वेत और दिव्य हो गया। इसी उज्ज्वल स्वरूप को “महागौरी” कहा गया। यह रूप नारी की दिव्यता, पवित्रता और तप की शक्ति को दर्शाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, जब राक्षसों के अत्याचार बढ़ गए, तब देवी ने महागौरी का रूप धारण कर दैत्यों का संहार किया। उन्होंने अपने सौम्य रूप से भक्तों को आश्रय और रौद्र रूप से असुरों का विनाश किया।
माता महागौरी का महत्व
महागौरी माता की उपासना करने से मन शुद्ध होता है और जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का आगमन होता है। यह स्वरूप विशेष रूप से वैवाहिक सुख, सौंदर्य, बुद्धि और पवित्रता प्रदान करने वाला माना जाता है। मां की कृपा से जन्म-जन्मांतर के पाप भी समाप्त हो जाते हैं और भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
माना जाता है कि जो कन्याएं अच्छे वर की कामना करती हैं, वे यदि महागौरी की पूजा करती हैं, तो उन्हें योग्य जीवनसाथी प्राप्त होता है। साथ ही, दांपत्य जीवन में भी यदि कोई कष्ट आ रहा हो, तो महागौरी माता की आराधना से वह कष्ट दूर हो जाता है।
माता महागौरी की पूजा विधि
पूजन समय:
महागौरी की पूजा नवरात्रि के आठवें दिन (अष्टमी तिथि) को की जाती है। यह दिन कन्या पूजन का भी होता है।
पूजन सामग्री:
- गंगाजल या शुद्ध जल
- अक्षत (चावल)
- रोली, हल्दी, कुमकुम
- सफेद फूल, विशेष रूप से चंपा या चमेली
- सफेद कपड़े या रूमाल
- नारियल, पान, सुपारी
- मिठाई (खासकर खीर और हलवा)
- दीपक और अगरबत्ती
- माता की मूर्ति या चित्र
पूजा विधि:
- स्नान और स्वच्छता: सर्वप्रथम प्रातः काल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा स्थान को साफ करके वहां माता महागौरी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- संकल्प लें: हाथ में फूल और चावल लेकर संकल्प करें कि आप श्रद्धा भाव से माता महागौरी की पूजा कर रहे हैं।
- आवाहन: माता का आवाहन करें और उन्हें प्रेमपूर्वक आमंत्रित करें – “मां महागौरी, आप मेरे पूजा स्थान में पधारें।”
- अर्घ्य और जल अर्पण करें: गंगाजल से माता के चरणों को धोएं और उन्हें जल, फूल, अक्षत, रोली-कुमकुम अर्पित करें।
- पूजन करें: माता को सफेद फूल अर्पित करें और सफेद रंग की मिठाई (विशेषतः नारियल या दूध से बनी चीजें) चढ़ाएं।
- आरती करें: महागौरी माता की आरती करें। आरती के समय घंटी या शंख बजाएं और “जय महागौरी माता” का जाप करें।
- कन्या पूजन: अष्टमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन कराना और उन्हें उपहार देना शुभ माना जाता है। यह मां को प्रसन्न करने का उत्तम उपाय है।
