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(भगवान विष्णु की कथा)

परशुराम अवतार (भगवान विष्णु की कथा)

भगवान विष्णु का परशुराम अवतार उनके दशावतारों में छठा अवतार है। यह अवतार उन्होंने पृथ्वी से अधर्मी और अन्यायी क्षत्रियों के संहार तथा धर्म की रक्षा के लिए लिया था।

परशुराम जी का जन्म

भगवान परशुराम का जन्म महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के यहाँ हुआ था। उनका नाम ‘राम’ रखा गया, लेकिन भगवान शिव से दिव्य परशु (फरसा) प्राप्त करने के कारण वे परशुराम कहलाए। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और उन्होंने शिव जी से युद्ध कौशल सीखा था।

कारण: क्षत्रियों के विनाश की प्रतिज्ञा

उनके पिता, महर्षि जमदग्नि, अत्यंत तपस्वी थे और उनके पास कामधेनु गाय थी, जो अनंत धन व समृद्धि प्रदान कर सकती थी। राजा कार्तवीर्य अर्जुन (एक अहंकारी क्षत्रिय) ने बलपूर्वक वह गाय छीन ली और क्रोध में आकर महर्षि जमदग्नि का वध कर दिया।

जब परशुराम को यह पता चला, तो उन्होंने क्षत्रियों के अत्याचारों को समाप्त करने की प्रतिज्ञा ली और अपने परशु से सम्पूर्ण पृथ्वी को 21 बार क्षत्रियों से मुक्त किया

भगवान गणेश से युद्ध

एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान परशुराम एक बार कैलाश पर्वत गए और भगवान शिव से मिलने लगे, लेकिन भगवान गणेश ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। इस पर क्रोधित होकर उन्होंने गणेश जी पर परशु फेंका, जिससे गणेश जी का एक दाँत टूट गया। इसलिए गणेश जी को ‘एकदंत’ भी कहा जाता है।

कर्ण को शाप

महाभारत में भगवान परशुराम, कर्ण के गुरु थे। जब उन्हें पता चला कि कर्ण ने झूठ बोलकर उनसे शिक्षा प्राप्त की है, तो उन्होंने क्रोधित होकर उसे शाप दिया कि युद्ध के समय वह अपने अर्जित ज्ञान को भूल जाएगा

शिक्षा:

परशुराम अवतार हमें यह सिखाता है कि अधर्म, अन्याय और अहंकार का अंत निश्चित है। साथ ही, गुरु के प्रति आदर और सत्यनिष्ठा का पालन अत्यंत आवश्यक है।

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