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(भगवान विष्णु की कथा)

नरसिंह अवतार (भगवान विष्णु की कथा)

भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार उनके दशावतारों में चौथा अवतार है, जिसे उन्होंने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा और अधर्मी राक्षस हिरण्यकशिपु के वध के लिए धारण किया था।

हिरण्यकशिपु एक अत्यंत शक्तिशाली असुर था, जिसने भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था कि उसे न कोई मनुष्य मार सके, न पशु; न दिन में, न रात में; न धरती पर, न आकाश में; न किसी अस्त्र से, न शस्त्र से। इस वरदान के कारण वह अजेय हो गया और उसने तीनों लोकों में आतंक मचा दिया। उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर भी प्रतिबंध लगा दिया।

परंतु उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। उसने पिता की आज्ञा का पालन करने से मना कर दिया और सदैव विष्णु-भक्ति में लीन रहा। हिरण्यकशिपु ने उसे कई यातनाएँ दीं, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कोई हानि नहीं हुई।

अंततः हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र से क्रोधित होकर पूछा, “तेरा भगवान कहाँ है?”
प्रह्लाद ने उत्तर दिया, “भगवान कण-कण में विद्यमान हैं, हर स्थान पर हैं।”
हिरण्यकशिपु ने क्रोधित होकर अपने महल के खंभे को तोड़ा, और तभी उसमें से भगवान विष्णु ने नरसिंह (आधा मानव, आधा सिंह) के रूप में प्रकट होकर हिरण्यकशिपु का वध कर दिया।

वे संध्या काल (न दिन, न रात), द्वार की चौखट पर (न धरती, न आकाश), अपने नाखूनों (न अस्त्र, न शस्त्र) से हिरण्यकशिपु का वध कर प्रह्लाद की रक्षा करते हैं।

इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अहंकार, अधर्म और अन्याय का अंत निश्चित है, तथा भगवान अपने भक्तों की सदैव रक्षा करते हैं

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