
कामदा एकादशी व्रत कथा
कामदा एकादशी व्रत कथा एवं उसकी पूजा विधि एवं उसका मुहूर्त
कामद एकादशी हिन्दू वर्ष की पहली एकादशी मानी जाती है जो रामनवमी के दूसरे दिन यानि चैत्र शुक्ल एकादशी को पड़ती है इस दिन की हिन्दू धर्म में बहुत मान्यता है ऐसा कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की आराधना और उपवास करने से सभी पापों का नाश होता है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। विशेष रूप से यह व्रत उन लोगों के लिए फलदायी है जो अपने जीवन में कोई विशेष इच्छा या उद्देश्य लेकर उपवास करते हैं।
दरअसल कामदा का अर्थ होता है — इच्छा पूरी करने वाला। इस एकादशी का व्रत से न सिर्फ इच्छाओं की पूर्ति होती है बल्कि व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और साथ ही साथ सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
अब आइए जानते हैं कामदा एकादशी की पौराणिक कथा, के बारे में ऐसा माना जाता है की ये कथा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाया था और महर्षि वशिष्ट ने राजा दिलीप को सुनाई थी साथ ही साथ इसकी पूजा विधि मुहूर्त के बारे में भी जानेगे।
कामदा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल की बात है, रत्नपुर नामक एक नगर था, जहाँ पुंडरीक नामक राजा राज करता था। यह नगर स्वर्ग के समान सुंदर और समृद्ध था। इस नगर में गंधर्व, किन्नर, अप्सराएं आदि रहते थे। राजा के दरबार में कई गंधर्व गायक और नर्तक अपनी कला का प्रदर्शन किया करते थे।
इसी नगर में ललिता नाम की एक सुंदर गंधर्व कन्या और ललित नाम का गायक गंधर्व रहते थे। दोनों एक-दूसरे से प्रेम करते थे और साथ में समय बिताते थे। ललित की आवाज बहुत मधुर थी और वह राजा के दरबार में गाना गाया करता था।
एक बार की बात है, जब ललित राजा के दरबार में गा रहा था, तब वह ललिता की यादों में खोया हुआ था। उसका ध्यान संगीत में नहीं था और वह सुरों को ठीक से नहीं साध पा रहा था। राजा को यह बहुत बुरा लगा और उसने क्रोधित होकर ललित को श्राप दे दिया और कहा — “तू अपने प्रेम में इतना अंधा हो गया है कि दरबार की मर्यादा भूल गया, मई तुझे श्राप देता हूँ जा और जा कर एक भयानक राक्षस बनकर दुःख भोग।”
राजा का श्राप तुरंत प्रभावी हो गया और ललित एक भयंकर राक्षस के रूप में धरती पर आ गिरा। उसका शरीर विकराल और भयंकर हो गया। यह देख ललिता बहुत दुखी हुई। वह अपने प्रिय को इस अवस्था में देखकर व्याकुल हो गई और उसे अपने साथ लेकर वन-वन भटकने लगी।
एक दिन वे दोनों भटकते भटकते वे दोनों जंगल में महर्षि श्रंगी के आश्रम में पहुंचे। ललिता ने ऋषि को प्रणाम कर उन्हें अपनी व्यथा सुनाई और उनसे इस समस्या का समाधान पूछा। तब महर्षि श्रंगी ने कहा हे देवी! चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहते हैं। इस दिन श्रद्धा भाव से उपवास करने और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और शाप भी समाप्त हो जाता है। यदि आप इस व्रत को करें और इसका पुण्य अपने पति को अर्पित करें, तो निश्चित ही वह अपने राक्षस रूप से मुक्त हो जाएगा।
ललिता ने महर्षि श्रृंगी के कथनानुसार कामदा एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया। अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करके उसने उस पुण्य का फल अपने पति ललित को अर्पित किया। व्रत के पुण्य से तुरंत ही एक दिव्य प्रकाश उत्पन्न हुआ और ललित का राक्षस रूप समाप्त हो गया। वह फिर से सुंदर और तेजस्वी गंधर्व बन गया। ललित को देख कर ललिता की आंखों में आँसू आ गए, लेकिन इस बार वे आँसू दुःख के नहीं, प्रसन्नता के थे। दोनों ने ऋषि को धन्यवाद दिया और भगवान विष्णु की भक्ति में लीन होकर अपने घर लौट गए।
कामदा एकादशी पूजा विधि
कामदा एकादशी व्रत का पालन बहुत श्रद्धा और नियमपूर्वक किया जाता है। इस व्रत की विधि सरल है लेकिन इसमें अनुशासन और भक्ति अत्यंत आवश्यक है। नीचे व्रत की सम्पूर्ण प्रक्रिया चरणबद्ध ढंग से दी गयी है:
ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान करें
- व्रत वाले दिन (एकादशी तिथि) सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें।
- शुद्ध वस्त्र धारण करें और घर या पूजा स्थान को साफ-सुथरा रखें।
- मन में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए दिन की शुभ शुरुआत करें।
2. व्रत का संकल्प लें
- साफ आसन पर बैठकर हाथ में जल, फूल और चावल लेकर भगवान विष्णु का स्मरण करें।
- यह संकल्प लें:
“मैं भगवान श्री हरि विष्णु की कृपा के लिए कामदा एकादशी व्रत रखता/रखती हूँ और दिनभर उपवास करूंगा/करूंगी।”
3. भगवान विष्णु की पूजा करें
- भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीपक जलाएं।
- उन्हें तुलसी दल, चंदन, पीले फूल, पीले वस्त्र, फल, पंचामृत और मीठा भोग अर्पित करें।
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें (कम से कम 108 बार)।
- विष्णु सहस्त्रनाम या एकादशी व्रत कथा का पाठ करें।
4. व्रत पालन (उपवास)
- पूरे दिन उपवास रखें। यदि स्वास्थ्य ठीक है तो निर्जल व्रत (बिना अन्न और जल) करें।
- अन्यथा फलाहार व्रत भी किया जा सकता है, जिसमें फल, दूध, मेवा आदि का सेवन किया जाता है।
- अन्न, चावल, दाल, मसाले, प्याज-लहसुन आदि वर्जित होते हैं।
5. रात्रि जागरण करें (जागरण एवं भजन-कीर्तन)
- रात को सोने की बजाय भगवान विष्णु का भजन, कीर्तन या नामस्मरण करते हुए जागरण करें।
- यह जागरण व्रत को पूर्णता प्रदान करता है और विशेष पुण्य फल देता है।
6. द्वादशी के दिन पारण करें
- अगले दिन (द्वादशी तिथि) सूर्योदय के बाद ब्राह्मण या जरूरतमंदों को भोजन कराएं, दान दें।
- इसके बाद व्रत करने वाला स्वयं व्रत का पारण (उपवास समाप्त करना) करे।
- पारण का समय विशेष होता है, इसे पंचांग या विश्वसनीय स्रोत से जानकर ही पालन करें।
💡 विशेष सुझाव:
- व्रत में सात्विकता बनाए रखें – मन, वाणी और कर्म तीनों से पवित्र रहें।
- क्रोध, झूठ, निंदा और अपवित्र विचारों से बचें।
- भगवान विष्णु के मंत्रों और कथाओं का श्रवण करें।
- गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, धन का दान करें।
🪔 भगवान विष्णु की पूजा में बोले जाने वाले मुख्य मंत्र
1. संकल्प मंत्र (व्रत का संकल्प करते समय)
ॐ विष्णोः प्रियं कामदा नाम्न्येकादश्याः व्रतमहं करिष्ये।
(“हे भगवान विष्णु! मैं कामदा एकादशी व्रत करने का संकल्प लेता/लेती हूँ।”)
2. ध्यान मंत्र (भगवान विष्णु का ध्यान करते समय)
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्॥
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्।
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
3. पूजन के समय बोले जाने वाला मंत्र
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
(इस मंत्र का 108 बार जाप बहुत शुभ माना जाता है।)
4. विष्णु अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र (108 नाम)
यदि समय हो तो भगवान विष्णु के 108 नामों का जाप करें।
उदाहरण:
- ॐ विष्णवे नमः
- ॐ लक्ष्मीनाथाय नमः
- ॐ मधुसूदनाय नमः
- ॐ दामोदराय नमः
(इत्यादि 108 नाम)
5. प्रार्थना मंत्र (पूजा के अंत में)
त्वमेव माता च पिता त्वमेव।
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव।
त्वमेव सर्वं मम देव देव॥
व्रत का समय एवं पूजा का मुहूर्त
कामदा एकादशी व्रत 2025 में निम्नलिखित तिथियों और समयों के अनुसार मनाया जाएगा:
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 7 अप्रैल 2025 को शाम 8:00 बजे
- एकादशी तिथि समाप्त: 8 अप्रैल 2025 को रात 9:12 बजे
व्रत पारण (उपवास तोड़ने) का समय:
- तारीख: 9 अप्रैल 2025
- समय: सुबह 6:02 बजे से 8:34 बजे तक
कामदा एकादशी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त पूरे दिन रहता है, लेकिन विशेष रूप से प्रातःकाल (सुबह) और संध्याकाल (शाम) के समय पूजा करना अधिक फलदायी माना जाता है। हालांकि, इस दिन व्रत रखने वाले भक्त रात्रि जागरण भी करते हैं, जिसमें पूरी रात भगवान विष्णु की भक्ति और कीर्तन किया जाता है।
