
भगवान विष्णु का छठा अवतार
अवतार भगवान विष्णु के दशावतारों में से छठा अवतार परशुराम का है। यह अवतार त्रेता युग में हुआ था और इसका मुख्य उद्देश्य अधर्मी क्षत्रियों का संहार कर धर्म की स्थापना करना था। परशुराम जी को भगवान विष्णु का अमर अवतार माना जाता है। वे शिव के परम भक्त, महाबली, और महान तपस्वी थे। इस कथा में हम जानेंगे कि क्यों भगवान विष्णु को परशुराम अवतार लेना पड़ा और उनकी अद्भुत लीलाएँ क्या थीं।
परशुराम जी का जन्म
परशुराम जी का जन्म भृगु कुल में हुआ था। उनके पिता महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और उन्हीं से उन्होंने दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किए। परशुराम जी के जन्म का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी से अन्यायी और अधर्मी राजाओं का नाश करना था।
कारण जिसके लिए परशुराम जी का अवतार हुआ
उस समय पृथ्वी पर क्षत्रिय राजा अत्याचारी और अधर्मी हो गए थे। वे अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रहे थे और ब्राह्मणों, ऋषियों और साधुओं को सताने लगे थे। महर्षि जमदग्नि के पास एक दिव्य कामधेनु गाय थी, जिससे वे यज्ञादि कार्यों के लिए आवश्यक सामग्री प्राप्त करते थे। एक बार राजा कार्तवीर्य अर्जुन ने बलपूर्वक वह गाय छीन ली और जब महर्षि जमदग्नि ने विरोध किया, तो उन्होंने उनका वध कर दिया। इस अन्याय से क्रोधित होकर परशुराम ने प्रतिज्ञा ली कि वे पृथ्वी से अधर्मी क्षत्रियों का नाश करेंगे।
परशुराम का प्रतिशोध और क्षत्रियों का संहार
परशुराम जी ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए राजा कार्तवीर्य अर्जुन को युद्ध में परास्त कर उसका वध कर दिया। इसके बाद उन्होंने संपूर्ण पृथ्वी पर 21 बार क्षत्रियों का संहार किया और उनकी शक्ति का अंत कर दिया।
भगवान शिव से परशुराम का विशेष संबंध
परशुराम जी भगवान शिव के परम भक्त थे और उन्होंने उन्हीं से परशु (कुल्हाड़ी) प्राप्त किया था, जिस कारण उनका नाम परशुराम पड़ा। भगवान शिव ने उन्हें दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए और महादेव से ही उन्होंने युद्ध-कला की शिक्षा प्राप्त की।
रामायण और महाभारत में परशुराम जी की भूमिका
- रामायण में भूमिका: जब भगवान श्रीराम ने शिव धनुष तोड़ा था, तब परशुराम अत्यंत क्रोधित हो गए थे। लेकिन जब उन्होंने श्रीराम के ईश्वरीय स्वरूप को पहचाना, तो वे शांत हो गए और उन्हें आशीर्वाद दिया।
- महाभारत में भूमिका: महाभारत काल में उन्होंने भीष्म, द्रोणाचार्य, और कर्ण को दिव्यास्त्रों की शिक्षा दी थी। परशुराम ही कर्ण के गुरु थे, लेकिन जब उन्हें पता चला कि कर्ण ने झूठ बोलकर उनसे शिक्षा ली थी, तो उन्होंने कर्ण को श्राप दे दिया कि वह सबसे आवश्यक समय में अपने दिव्यास्त्रों का उपयोग नहीं कर पाएगा।
परशुराम जी का अमरत्व
परशुराम जी एकमात्र ऐसे अवतार हैं जो चिरंजीवी (अमर) हैं। ऐसा माना जाता है कि वे आज भी तपस्या कर रहे हैं और जब कलियुग का अंत होगा, तब वे पुनः प्रकट होंगे और धर्म की स्थापना करेंगे।
परशुराम अवतार का संदेश
अधर्म का नाश आवश्यक है: जब अन्याय और अधर्म बढ़ जाता है, तब उसका अंत करना आवश्यक होता है।
शिक्षा और ज्ञान की महत्ता: परशुराम जी केवल योद्धा ही नहीं थे, बल्कि एक महान गुरु भी थे, जिन्होंने कई वीरों को शिक्षा दी।
सत्य और न्याय का पालन: उन्होंने अपने पिता के अपमान का प्रतिशोध लिया लेकिन हमेशा धर्म के मार्ग पर चले।
अहंकार का नाश: उन्होंने कई अहंकारी क्षत्रियों का संहार किया, जिससे यह सीख मिलती है कि अहंकार कभी भी व्यक्ति को श्रेष्ठ नहीं बनाता।
निष्कर्ष
भगवान परशुराम का अवतार केवल एक पौराणिक कथा नहीं है, बल्कि यह एक गहरी आध्यात्मिक शिक्षा भी प्रदान करता है। यह कथा हमें यह सिखाती है कि सत्य और न्याय की रक्षा के लिए संघर्ष आवश्यक है। परशुराम जी के चरित्र से हमें साहस, ज्ञान, और भक्ति का आदर्श मिलता है। वे आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं और उनका अवतार धर्म की रक्षा के प्रति समर्पण का प्रतीक है।