
पौराणिक कथा
ज्वाला देवी सिद्धपीठ की पौराणिक कथा
ज्वाला देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित एक प्रसिद्ध सिद्धपीठ है। यह मंदिर माँ भगवती के ज्वालामुखी स्वरूप को समर्पित है और इसे 51 सिद्धपीठों में से एक माना जाता है। इस पवित्र स्थल की महिमा और कथा अत्यंत प्राचीन और अद्भुत है। आइए, आज हम इस कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं।
पौराणिक कथा
तंत्र चूड़ामणि के अनुसार, माता सती भगवान शिव जी की पहली पत्नी थीं। माता सती ने यह विवाह अपने पिता राजा दक्ष की इच्छा के विरुद्ध किया था, जिससे राजा दक्ष अत्यंत क्रोधित थे। कुछ समय बाद राजा दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उन्होंने माता सती और भगवान शिव को उसमें आमंत्रित नहीं किया। माता सती ने बिना निमंत्रण के ही उस यज्ञ में जाने का निर्णय लिया, जबकि भगवान शिव ने उन्हें वहां जाने से रोका था।
जब माता सती यज्ञ स्थल पर पहुँचीं, तो उन्होंने देखा कि वहाँ उनके पति भगवान शिव का अपमान किया जा रहा है। यह सहन न कर पाने के कारण माता सती ने उसी यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया। जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ, तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए और माता सती के निर्जीव शरीर को उठाकर तांडव नृत्य करने लगे। उनके इस प्रचंड रूप से संपूर्ण ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया।
स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया। जहाँ-जहाँ माता सती के अंग गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई। ऐसी मान्यता है कि ज्वाला देवी स्थल पर माता सती की जीभ गिरी थी, और तभी से यहाँ अनंत काल से अग्नि की ज्वालाएँ प्रज्वलित हो रही हैं।
मंदिर की विशेषता
1. अखंड ज्वाला
इस मंदिर में किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती, बल्कि यहाँ धरती से स्वतः प्रकट होने वाली नौ अनंत ज्वालाएँ जलती रहती हैं। ये ज्वालाएँ विभिन्न देवी-स्वरूपों को दर्शाती हैं, जिन्हें ‘महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका और अंजीदेवी’ के नाम से जाना जाता है।
2. मुगल आक्रमण और अकबर की परीक्षा
इतिहास में उल्लेख मिलता है कि मुगल सम्राट अकबर ने इस मंदिर को नष्ट करने का प्रयास किया था। उसने मंदिर की अखंड ज्वाला बुझाने के लिए जल स्रोतों का मार्ग बदलकर मंदिर की ओर मोड़ दिया ताकि ज्वालाएँ बुझ जाएँ। लेकिन वह इसमें असफल रहा। इसके बाद अकबर ने यहाँ सोने का छत्र चढ़ाया, परंतु देवी की कृपा से वह छत्र गिरकर किसी अन्य धातु में परिवर्तित हो गया। यह घटना देवी की शक्ति का प्रमाण मानी जाती है।
3. वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो यह स्थान प्राकृतिक गैस के स्रोत के ऊपर स्थित है, जिससे निरंतर ज्वालाएँ निकलती हैं। लेकिन यह रहस्य आज भी बना हुआ है कि इतने वर्षों से बिना किसी बाहरी ईंधन के ये ज्वालाएँ कैसे जल रही हैं। यह मंदिर आस्था और विज्ञान का अनोखा संगम है।
मंदिर में दर्शन और मान्यताएँ
नवरात्रि में विशेष आयोजन
नवरात्रि के दौरान यहाँ भक्तों की अपार भीड़ उमड़ती है। श्रद्धालु विशेष रूप से कंजक पूजन और ज्योति दर्शन के लिए यहाँ आते हैं। इस समय मंदिर का वातावरण अत्यंत आध्यात्मिक और भक्तिमय हो जाता है।
मनोकामना पूर्ति का स्थान
यह भी मान्यता है कि जो भक्त सच्चे हृदय से माता ज्वाला देवी की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर अखंड ज्योति में घी चढ़ाकर माँ का धन्यवाद अर्पित करते हैं।
यात्रा और दर्शन का अनुभव
मंदिर में प्रवेश करने पर भक्तों को दिव्य ऊर्जा का अनुभव होता है। जैसे ही वे ज्वाला माता के दर्शन करते हैं, उनका मन भक्तिभाव से भर जाता है।
ज्वालाजी कब जाएँ?
हिमाचल में स्थित होने के कारण, आप साल के किसी भी समय यहाँ जा सकते हैं, लेकिन ज्वालाजी जाने का सबसे अच्छा समय सितंबर से मार्च तक है, यह वह समय है जब मंदिर और उसके आस-पास के स्थानों पर जाने के लिए तापमान एकदम सही होता है। नवरात्रि के दौरान यहाँ जाना एक और बढ़िया समय होगा, इस समय पूरा मंदिर खूबसूरती से सजाया जाता है और वहाँ का माहौल बिल्कुल अलग होता है। मंदिर पूरे साल खुला रहता है, इसलिए कभी-कभी मानसून में वहाँ जाना मुश्किल हो सकता है, इसलिए जाने से पहले मौसम की स्थिति की जाँच कर लें। आप चाहे तो दिसंबर और जनवरी के महीने में भी जा सकते है इस समय यहाँ खूब बर्फ बारी होती है।
ज्वाला देवी मंदिर में आरती का समय
यदि आप अपनी यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो माता ज्वाला देवी की महाआरती में भाग लेना आपके लिए बहुत सौभाग्य की बात होगी । मंदिर में दिन में कई बार आरती की जाती है जैसे:
- ज्वालाजी में मंगल आरती: सुबह 5:00 बजे से सुबह 6:00 बजे तक (दिन की पहली आरती)
- पंजुचार पूजन: यह दिन की दूसरी आरती है जो गर्मियों में सुबह 8:00 बजे और सर्दियों में 9 बजे से शुरू होती है।
- भोग आरती: गर्मियों में दोपहर 12:00 बजे और सर्दियों में दोपहर 1 बजे (तीसरी आरती)
- शाम की आरती: गर्मियों में शाम 7:00 बजे और सर्दियों में रात 8:00 बजे (चौथी आरती)
- शैया आरती: यह दिन की आखिरी आरती है, जो आमतौर पर रात 10 बजे के आसपास होती है (पांचवीं आरती)
आप अपनी यात्रा को कुछ इस प्रकार प्लान करे ताकि आप भी इस महा आरती में सम्मिलित हो सके।
कांगड़ा में ज्वालामुखी मंदिर के पास होटल
ज्वाला देवी मंदिर के पास आरामदायक आवास ढूंढना आसान है, यहां विभिन्न मूल्य श्रेणियों में कई होटल और लॉज उपलब्ध हैं। यहां कुछ बेहतरीन विकल्प दिए गए हैं:
- होटल ज्वाला जी
पता: एचजीजी, ज्वालामुखी, हिमाचल प्रदेश 176031
कीमत: ₹1000 – ₹2500 प्रति रात्रि
- होटल अभी ज्वालामुखी
पता: ज्वाला जी मंदिर रोड, ज्वालामुखी, हिमाचल प्रदेश 176031
कीमत: ₹1100- ₹3000 प्रति रात्रि
- शुभम् गेस्ट हाउस ज्वालामुखी
पता: वार्ड नं. 7, शुभम गेस्ट हाउस, दूसरी रेड लाइट के सामने, ज्वालामुखी, हिमाचल प्रदेश 176031
कीमत: ₹1200 – ₹3500 प्रति रात
- तुषार गेस्ट हाउस
पता: चिंतपूर्णी रोड, ज्वालामुखी, हिमाचल प्रदेश 176031
कीमत: ₹900 से ₹2500
ज्वाला देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है और इसके आसपास कई खूबसूरत और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान हैं। यदि आप ज्वाला देवी मंदिर के दर्शन करने जा रहे हैं, तो आप इन जगहों की यात्रा भी कर सकते हैं:
ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के निकट घूमने योग्य स्थान
1. कांगड़ा किला
– यह भारत के सबसे प्राचीन किलों में से एक है और कांगड़ा घाटी का प्रमुख आकर्षण है।
– किला कांगड़ा राजाओं द्वारा बनाया गया था और इसमें मुगल तथा सिख शासनकाल की झलक मिलती है।
2. ब्रजेश्वरी देवी मंदिर (कांगड़ा देवी मंदिर)
– यह शक्तिपीठों में से एक है और माता ब्रजेश्वरी को समर्पित है।
– नवरात्रि के दौरान यहाँ विशेष पूजा-अर्चना होती है।
3. चामुंडा देवी मंदिर
– यह मंदिर माता चामुंडा को समर्पित है और इसे 51 शक्तिपीठों में गिना जाता है।
– यहाँ से सुंदर धौलाधार पर्वतों का दृश्य देखा जा सकता है।
4. धर्मशाला और मैक्लोडगंज
– धर्मशाला बौद्ध संस्कृति और हिमालय की खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है।
– मैक्लोडगंज को ‘लिटिल ल्हासा’ भी कहा जाता है और यह तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा का निवास स्थान है।
– यहाँ भागसू नाग मंदिर, भागसू वाटरफॉल और त्सुगलाखांग मठ घूमने लायक हैं।
5. पालमपुर
– पालमपुर चाय बागानों के लिए प्रसिद्ध है और यहाँ का प्राकृतिक वातावरण बहुत ही मनमोहक है।
– आर्ट गैलरी, टी गार्डन और सुंदर घाटियों का आनंद लिया जा सकता है।
6. नैना देवी मंदिर
– यह भी एक प्रमुख शक्तिपीठ है और बिलासपुर जिले में स्थित है।
– यहाँ से गोविंद सागर झील का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है।
7. मसरूर रॉक कट मंदिर
– यह प्राचीन गुफा मंदिर है, जिसे 8वीं सदी में बनाया गया था।
– यह मंदिर भारतीय वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है।
8. प्रागपुर हेरिटेज विलेज
– इसे भारत का पहला हेरिटेज विलेज कहा जाता है।
– यहाँ पारंपरिक हिमाचली संस्कृति और वास्तुकला को नजदीक से देखा जा सकता है।
