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कामदा सप्तमी व्रत महत्व, पूजा विधि और कथा

कामदा सप्तमी व्रत (6 मार्च )

परिचय

कामदा सप्तमी व्रत हिन्दू धर्म में अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है। यह व्रत विशेष रूप से संतान सुख, मनोकामना पूर्ति और जीवन में समृद्धि लाने के लिए रखा जाता है। यह व्रत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति की समस्त इच्छाएँ पूर्ण होती हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कामदा सप्तमी व्रत का महत्व

कामदा सप्तमी व्रत का विशेष महत्व है क्योंकि इसे करने से जीवन में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और उनकी कृपा से भक्तों की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से व्यक्ति को कष्टों से मुक्ति मिलती है और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

कामदा सप्तमी व्रत की पूजा विधि

इस व्रत को करने के लिए भक्तों को कुछ विशेष नियमों का पालन करना होता है। पूजा विधि इस प्रकार है:

  1. स्नान एवं संकल्प

    • प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
    • संकल्प लें कि आप पूरे विधि-विधान से कामदा सप्तमी व्रत का पालन करेंगे।
  2. भगवान विष्णु की पूजा

    • भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को स्वच्छ स्थान पर स्थापित करें।
    • धूप, दीप, पुष्प और चंदन से भगवान विष्णु की आराधना करें।
    • तुलसी पत्र अर्पित करें क्योंकि भगवान विष्णु को तुलसी अत्यंत प्रिय है।
  3. भगवान श्रीराम की पूजा

    • इस दिन भगवान राम की पूजा करने का भी विशेष महत्व है।
    • उन्हें पीले फूल, फल, और पंचामृत अर्पित करें।
    • विष्णु सहस्त्रनाम या श्रीराम चालीसा का पाठ करें।
  4. व्रत कथा का श्रवण

    • इस व्रत में कामदा सप्तमी व्रत कथा का श्रवण अवश्य करें।
    • कथा सुनने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
  5. दान और भोग प्रसाद

    • इस दिन ब्राह्मणों को दान देना अत्यंत शुभ माना जाता है।
    • फल, मिठाई, वस्त्र और दक्षिणा का दान करें।
    • अंत में भगवान विष्णु को भोग अर्पित करें और फिर प्रसाद ग्रहण करें।

कामदा सप्तमी व्रत कथा

पुराणों में कामदा सप्तमी व्रत की एक बहुत ही रोचक कथा वर्णित है। कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक राजा था, जिसका नाम चित्रकेतु था। राजा की अनेक पत्नियाँ थीं, लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी। राजा ने कई व्रत और अनुष्ठान किए, लेकिन उन्हें संतान सुख की प्राप्ति नहीं हुई।

एक दिन महर्षि नारद राजा के दरबार में आए और उन्होंने राजा से कहा कि यदि वे चैत्र शुक्ल सप्तमी के दिन श्रद्धा और भक्ति से कामदा सप्तमी व्रत करें तो उन्हें अवश्य संतान की प्राप्ति होगी। राजा ने महर्षि नारद के निर्देशानुसार व्रत रखा और विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की।

इस व्रत के प्रभाव से कुछ समय बाद राजा की रानी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। राजा चित्रकेतु अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने इस व्रत को अपने राज्य में सभी लोगों को करने का आदेश दिया। तभी से यह व्रत संतान प्राप्ति और सुख-समृद्धि के लिए किया जाने लगा।

कामदा सप्तमी व्रत के लाभ

  1. संतान सुख – जो दंपति संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, उनके लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी है।
  2. सभी कष्टों का निवारण – यह व्रत करने से जीवन में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं और व्यक्ति को सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
  3. पारिवारिक सुख-समृद्धि – यह व्रत करने से परिवार में खुशहाली आती है और आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
  4. मोक्ष की प्राप्ति – भगवान विष्णु की कृपा से व्रती को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कामदा सप्तमी व्रत में ध्यान रखने योग्य बातें

  • व्रत के दिन सात्विक भोजन का ही सेवन करें।
  • इस दिन किसी भी प्रकार का तामसिक आहार, जैसे लहसुन-प्याज, मांस, मदिरा आदि का सेवन न करें।
  • यदि संभव हो तो दिनभर उपवास रखें और केवल फलाहार करें।
  • संध्या के समय विष्णु भगवान की आरती करें और भजन-कीर्तन करें।
  • व्रत के बाद किसी जरूरतमंद व्यक्ति को अन्न, वस्त्र और धन का दान करें।
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